जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद एक बार फिर सिर उठा रहा है। अगर इसे तुरंत कुचला नहीं गया तो देश का मुकुट माना जाने वाला यह केंद्र शासित प्रदेश एक बार फिर उसी दुष्चक्र में फंस सकता है, जिसमें यह वर्षों से उलझा हुआ है। 15 जुलाई को जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में सेना के एक अधिकारी और चार जवान शहीद हो गए थे। 9 जून को केंद्र में नई सरकार के शपथ ग्रहण के बाद से जम्मू-कश्मीर में चार आतंकी हमले हो चुके हैं और इन सभी में सुरक्षा बलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। रियासी में तीर्थयात्रियों से भरी बस पर हुए हमले में 9 लोगों की मौत हो गई थी और 41 अन्य घायल हो गए थे। खास बात यह है कि ये सभी हमले जम्मू क्षेत्र में हुए हैं, जो कश्मीर में आतंकियों के काम करने के तरीके में बदलाव को दर्शाता है। दो दशक पहले चलाया गया था ऑपरेशन
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी और घुसपैठ विरोधी अभियानों का हालिया इतिहास बताता है कि पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद आतंकी संगठनों के अभियान उत्तरी कश्मीर में दबाव में आते हैं और लगातार पीर पंजाल के दक्षिण में ‘सॉफ्ट स्पॉट’ तलाशते रहते हैं। इसे रोकने के लिए सेना ने कमर कस ली है। जम्मू रेंज में कम से कम तीन ब्रिगेड की अतिरिक्त टुकड़ियां तैनात की जा रही हैं। यह दो दशक पहले सेना द्वारा इन जंगलों में चलाए गए ऑपरेशन की याद दिलाता है। वर्ष 2003 में भारतीय सेना ने सीमा पार से घुसपैठ कर आए आतंकियों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन सर्पविनाश चलाया था। तब आतंकियों ने पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में घने जंगलों में खासकर पुंछ के हिलकाका इलाके में अपने कैंप बना लिए थे।
जानिए जम्मू में हमलों में बढ़ोतरी की वजह?
इस बार भी आतंकियों ने गुफाओं के अंदर कई ठिकाने बनाए हैं। उन्होंने प्रवासी बक्करवालों के ढोक (इंसानों और मवेशियों के लिए आश्रय) में बंकर बनाए और संचार नेटवर्क स्थापित किया। मेंढर के दक्षिण में हिलकाका से पीर पंजाल रेंज तक जाने वाला इलाका घुसपैठियों के लिए नियंत्रण रेखा के पार से कश्मीर घाटी तक पहुंचने के सबसे छोटे रास्तों में से एक है। आतंकियों ने जानबूझकर इस इलाके को कैंप लगाने के लिए चुना है। इस इलाके पर कब्जा करने से सैन्य अभियान की स्थिति में पाकिस्तान तक पहुंचने का रास्ता मिल सकता है और आतंकियों के लिए घुसपैठ करना आसान हो सकता है। घने जंगल और खड़ी पहाड़ी ढलानें इस इलाके को उनके लिए मुफीद बनाती हैं। जब भी भारतीय जवान इलाके की तलाशी लेते थे तो आतंकी वहां छिपने में कामयाब हो जाते थे और मुठभेड़ की स्थिति में उन पर काबू पा लेते थे। नतीजतन सुरक्षाकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ती थी।
ऑपरेशन सर्प विनाश क्या था?
डोडा क्षेत्र में मुठभेड़ों की मौजूदा स्थिति 2003 की याद दिलाती है जब जनरल एनसी विज सेना प्रमुख थे और लेफ्टिनेंट जनरल रुस्तम नानावटी के नेतृत्व में उत्तरी कमान ने आतंक प्रभावित पहाड़ी इलाकों को खाली करने के लिए जम्मू-कश्मीर के राजौरी-पुंछ सेक्टर में ऑपरेशन सर्प विनाश शुरू किया था। जिसमें आतंकियों को निशाना बनाने के लिए पीर पंजाल रेंज के दोनों तरफ सेना को तैनात किया गया था। सेना ने अप्रैल 2003 से जम्मू-कश्मीर में अपना अब तक का सबसे बड़ा आतंकवाद विरोधी अभियान चलाया था। पीर पंजाल रेंज के कारण इसे सेना का पीर पंजाल पंच भी कहा जाता है।
10,000 सैनिक थे शामिल
करीब तीन महीने तक चला यह ऑपरेशन तीन प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे ऊंचे जंगली पहाड़ों में करीब 150 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में चलाया गया था। इस ऑपरेशन में 15वीं कोर और 16वीं कोर के करीब 10,000 सैनिक शामिल थे। आतंकियों के कब्जे वाले बकरवाल गांव हिलकाका में सैनिकों को एयरलिफ्ट करने के लिए एमआई-17 हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया। घुसपैठियों द्वारा बनाए गए कंक्रीट के बंकरों को नष्ट करने के लिए भी हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया।
ऑपरेशन का नतीजा क्या रहा
इस ऑपरेशन में करीब 100 आतंकी मारे गए। बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार के हथियार, विस्फोटकों के ढेर, करीब 7,000 किलोग्राम राशन, दवाइयां और संचार उपकरण बरामद किए गए। ऑपरेशन में करीब 40-50 आतंकी ठिकाने नष्ट किए गए। इस ऑपरेशन ने आतंकियों को पूरी तरह से खदेड़ दिया। इलाके में पूरी तरह से शांति स्थापित हो गई, जो साल 2017-18 तक चली। हालांकि जम्मू के बाहरी इलाकों को छोड़कर घाटी में आतंकी घटनाएं होती रहीं, लेकिन 2021 से इलाके में सुरक्षा बलों पर बड़े हमले फिर से शुरू हो गए।
क्यों शुरू किया गया था ऑपरेशन सर्प विनाश
जब 2003 में ऑपरेशन सर्प विनाश को अंजाम दिया गया था, उस समय कारगिल युद्ध (1999) की यादें ताजा थीं। फिर 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान से लगी सीमा पर बड़े पैमाने पर लामबंदी अभ्यास ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया था, जो लंबे समय तक चला था। जब 2003 की शुरुआत में ऑपरेशन सर्प विनाश शुरू हुआ, तो जानकारी मिली कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर घुसपैठ करने वाले 300 से अधिक विदेशी आतंकवादियों ने सुरनकोट और हिलकाका के इलाकों में शिविर स्थापित किए थे।