Thursday, November 21, 2024
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शेख हसीना के पिता चोरी से आए थे भारत, पुलिस ने क्यों दिया पाकिस्तान के कब्जे से? भड़के हुए थे नेहरू

1970 के दशक की शुरुआत में पूर्वी पाकिस्तान में आज़ादी की मांग तेज़ होने लगी थी। शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में स्वाधीन बांग्ला बिप्लबी परिषद का गठन किया गया। यह एक हथियारबंद आंदोलन था और इसमें सिराजुल आलम खान, अब्दुल रज्जाक और काजी आरिफ अहमद जैसे क्रांतिकारी छात्र नेता शामिल थे। बिप्लबी परिषद ने अपनी खुद की राजनीतिक इकाई भी बनाई और इसका नाम बांग्लादेश लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) रखा। परिषद और बीएलएफ ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र देश बनाने के लिए भूमिगत अभियान शुरू किया।

शेख मुजीब गुप्त रूप से भारत आए

हाल ही में पेंगुइन द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘इंडियाज नियर ईस्ट: ए न्यू हिस्ट्री’ में अविनाश पालीवाल लिखते हैं कि भारत की खुफिया एजेंसी आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) शुरू से ही बांग्लादेश लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) के संपर्क में थी। 1962 में बांग्ला बिप्लबी परिषद का नेतृत्व कर रहे शेख मुजीबुर रहमान गुप्त रूप से अगरतला आए। यहां उनकी मुलाकात वरिष्ठ कांग्रेस नेता सचिंद्र लाल सिंह से हुई, जो कुछ ही दिनों में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बनने वाले थे।

शेख मुजीब ने सचिंद्र लाल से नेहरू से बात करने का अनुरोध किया, ताकि भारत सरकार बांग्लादेश के छात्रों के सशस्त्र विद्रोह का समर्थन करे। हालांकि, नेहरू का मानना ​​था कि अगर पूर्वी पाकिस्तान में सशस्त्र विद्रोह का समर्थन किया गया, तो इससे पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते और खराब हो जाएंगे। पालीवाल लिखते हैं कि जवाहरलाल नेहरू शेख मुजीब से सहानुभूति रखते थे, लेकिन उन्होंने तुरंत कुछ नहीं किया। बल्कि, उन्होंने उनसे धैर्य रखने और जल्दबाजी न दिखाने को कहा।

आईएसआई ने शेख मुजीब की तलाश शुरू कर दी

अविनाश पालीवाल शेख हसीना के हवाले से लिखते हैं कि शेख मुजीब की उस यात्रा के बारे में केवल हम भाई-बहन और उन्हें अगरतला ले जाने वाले दो अन्य लोगों को ही पता था। जब नेहरू की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो ‘बंगबंधु’ ने बांग्लादेश लौटने का फैसला किया। हालांकि, इस बीच पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई शेख मुजीब की तलाश कर रही थी। जब चार-पांच दिनों तक शेख मुजीब का कोई सुराग नहीं मिला, तो आईएसआई बेचैन हो गई।

भारतीय पुलिस ने उन्हें पाकिस्तान को सौंप दिया

6 फरवरी 1962 को जब शेख मुजीब अगरतला से बांग्लादेश लौटने लगे तो भारतीय सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें सीमा पर पकड़ लिया और पाकिस्तान की सीमा पुलिस को सौंप दिया। भारतीय सुरक्षा बलों को यह नहीं पता था कि शेख मुजीब किस उद्देश्य से भारत आए हैं। अविनाश पालीवाल लिखते हैं कि जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इस बात का पता चला तो वे बहुत नाराज़ हुए।

क्या इसमें भारत की कोई रणनीति थी?

पालीवाल के अनुसार, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि भारत ने जानबूझकर रणनीति के तहत शेख मुजीब को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को सौंपा था, ताकि उनके परिवार को आईएसआई की यातना से बचाया जा सके या वास्तव में यह एक गलती थी। जब भारतीय सुरक्षा बलों ने शेख मुजीब को पाकिस्तान को सौंपा तो उन्हें ढाका ले जाया गया।

उनके खिलाफ पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट (PSA) के तहत मामला दर्ज किया गया, उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। करीब 5 महीने बाद 18 जून 1962 को शेख मुजीबुर को जेल से रिहा कर दिया गया।

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