शाहजहां (Shah Jahan) के लिए जो पुलाव बनता, उसके चावल पर चांदी के वर्क से लेप लगाया जाता था. हकीम का तर्क था कि चांदी के वर्क वाला चावल पाचन के लिए अच्छा है. साथ ही ये कामोत्तेजना भी बढ़ाता है.’
मुगल बादशाह शाहजहां साल 1628 में गद्दी पर बैठे. लंबे-चौड़ गठीले बदन के मालिक शाहजहां दूसरे मुगल बादशाहों से कई मायने में अलग थे. उनकी गीत-संगीत में गहरी दिलचस्पी थी. इतिहासकार निकोलाओ मनूची अपनी किताब में लिखते हैं कि शाहजहां अक्सर शेरो-शायरी सुना करते थे. वह खुद भी बहुत अच्छा गाते थे और नृत्य भी कर लेते थे. वह जब भी कहीं बाहर जाते तो उनके साथ नाचने-गाने वाली महिलाओं का पूरा समूह चलता, जिसे ‘कंचन’ कहा जाता था.
24 की उम्र में पहली बार पी शराब
अब्राहम एराली अपनी किताब ‘एंपरर्स ऑफ द पीकॉक थ्रोन: द सागा ऑफ़ द ग्रेट मुग़ल’ (Emperors of the Peacock Throne: The Saga of the Great Mughals) में लिखते हैं कि शाहजहां की जो सबसे बड़ी खासियत थी वह उनका सेल्फ कंट्रोल था. दूसरे मुगल बादशाहों से इतर जब वह 24 साल के हुए तब पहली बार शराब को हाथ लगाया. वह भी तब जब उनके पिता ने उन्हें मजबूर किया. इसके बाद अगले 6 सालों तक यदा-कदा ही शराब पी. साल 1620 में जब वह दक्षिण के अभियान पर निकले तो शराब से पूरी तरह तौबा कर ली. उनके खेमे के साथ जो शराब ले जाई गई थी, उसे नदी में फिंकवा दिया.
चांदी के वर्क वाला चावल ही खाते थे
शाहजहां खाने-पीने के भी शौकीन थे. उनका मेनू हकीमों द्वारा तैयार किया जाता था. एक-एक चीज का बारीकी से ध्यान रखा जाता था. शाही रसोई में सारे व्यंजन सेहत को ध्यान में दिए पकते थे. सलमा हुसैन अपनी किताब ‘द मुगल फीस्ट: रेसिपीज फ्रॉम द किचन ऑफ एंपरर शाहजहां’ में लिखती हैं कि शाही हकीम जो मेनू तैयार करते, उसी के मुताबिक शाही किचन में भोजन बनता.
शाहजहां के लिए जो पुलाव बनता, उसके चावल पर चांदी के वर्क से लेप लगाया जाता था. हकीम का तर्क था कि चांदी के वर्क वाला चावल पाचन के लिए अच्छा है. साथ ही ये कामोत्तेजना भी बढ़ाता है. सलमा हुसैन लिखती हैं कि बादशाह शाहजहां ज्यादातर समय अपनी रानियों या हरम की दूसरी महिलाओं के साथ भोजन किया करते थे.
जहरीला खाना पहचानने वाली प्लेट
गद्दी संभालने के बाद शाहजहां को हमेशा अपनी मौत का डर सताता रहता. खासकर इस बात का सबसे ज्यादा डर था कि कोई उन्हें जहर दे सकता है. इसलिए उन्होंने अपनी सुरक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. करीबियों के सुझाव पर खाना चखने वाला रखा. बादशाह के लिए लाए गए किसी खाने को पहले चखने वाले को परोसा जाता. उसके बाद ही बादशाह खाते थे. शाहजहां के करीबियों ने जहर से बचने के लिए खास प्लेटें भी बनवाई, जो फौरन जहर की पहचान कर लेती थी.
कारीगरों ने शाहजहां के लिए खास चीनी मिट्टी से कुछ इस तरीके की तस्तरी डिजाइन की, जिसमें विषाक्त भोजन डालते ही या तो इसका रंग बदल जाता या तुरंत चिटककर टूट जाती थी. शाहजहां की ये प्लेट आज भी आगरा के म्यूजियम में रखी है. इस प्लेट के ठीक ऊपर परिचय के रूप में लिखा है ‘जहर परख रकाबी’, यानी ऐसा बर्तन जो जहरीला भोजन डालने से रंग बदल देता है या टूट जाता है.