नीना गुप्ता करीब 30 साल बाद राष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर बेहद खुश हैं। 16 अगस्त को 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के विजेताओं की घोषणा की गई, जिसमें नीना गुप्ता को फिल्म ‘ऊंचाई’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। साल 2022 में रिलीज होने वाली इस फिल्म में वह शबीना सिद्दीकी के किरदार में नजर आई थीं। अब नीना गुप्ता ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने पर अपना रिएक्शन दिया है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जब नीना गुप्ता से पूछा गया कि क्या वह अब भी प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने की इच्छा रखती हैं, तो उन्होंने कहा, ‘हर व्यक्ति पुरस्कार का लालची होता है। जब मुझे यह नहीं मिलता है, तो कुछ समय के लिए दुख होता है, उसके बाद मैं भूल जाती हूं और सोचती हूं कि अगर आप काम करेंगे, तो आपको यह कभी न कभी मिलेगा। सराहना के साथ और जब आपको कोई पुरस्कार मिलता है, तो बहुत अच्छा लगता है।’
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20 साल पहले जीता था दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार
नीना गुप्ता का यह तीसरा राष्ट्रीय पुरस्कार है। उन्होंने सबसे पहले वर्ष 1993 में ‘बाजार सीताराम’ के लिए किसी निर्देशक की सर्वश्रेष्ठ पहली गैर-फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था। इसके बाद, 1994 में ‘वो छोकरी’ के लिए नीना गुप्ता ने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।
नीना गुप्ता क्यों काम करती हैं?
नीना गुप्ता से पूछा गया कि वह किसके लिए काम करती हैं, इसके जवाब में अभिनेत्री ने कहा, ‘आप इसलिए काम करती हैं ताकि लोग आपकी सराहना करें, अन्यथा आप इतना काम क्यों करतीं। मैं अपने ड्राइंग रूम में कोई नाटक नहीं खेलना चाहती। मैं चाहती हूं कि ज्यादा से ज्यादा लोग मुझे देखें और मेरे काम की सराहना करें। यह पुरस्कार मुझे अच्छा महसूस कराता है कि ‘ठीक है, मेहनत करते रहो, आज नहीं तो कल तुम्हें फल मिलेगा। यह मुझे अच्छा काम करते रहने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है।’
‘आपको अपने दांत का दर्द खुद ही सहना पड़ता है’
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (दिल्ली) में बिताए अपने पुराने दिनों को याद करते हुए नीना गुप्ता ने कहा, ‘हम एनएसडी में एक नाटक करते थे, उसमें एक डायलॉग था कि हर किसी को अपने दांत का दर्द खुद ही सहना पड़ता है। दूसरा व्यक्ति आपके साथ बैठ सकता है, लेकिन आपको दर्द सहना पड़ता है। इसलिए मुझे लगता है कि इसी तरह की दृढ़ता के कारण मैं आगे बढ़ती रही, जब चीजें ठीक नहीं चल रही थीं, तब भी मैं आगे बढ़ती रही। मुझे लोगों से खूब समर्थन मिलता रहा, लेकिन आखिरकार मैं ही हूं जिसने कभी असफलता के आगे घुटने नहीं टेके।’