Wednesday, February 5, 2025
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जिस ‘प्यार’ से टूटा राजा का रिश्ता, वो 14 साल बाद फिर मिली, वो अब तक थी कुंवारी और वो दो बच्चों का बाप

ये फिल्मी कहानी एक राजघराने की है. महाराजा ओडिशा जवान थे. कुंवारे थे. एक समारोह में एक लड़की से मिले. वो उन्हें अच्छी लगी. लड़की को वो अच्छे लगे. दोनों प्यार करने लगे. शादी तक बात पहुंच गई. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि दोनों की राहें जुदा हो गईं. टूटे हुए दिल से राजा ने किसी और से घरवालों की मर्जी से शादी रचाई. 20 साल बाद राजा फिर उस लड़की से कहीं टकराया. तब क्या हुआ.

ये कहानी ओडिशा के मयूरभंज के राजपरिवार की है. करीब 100 साल पहले की. इससे शाही परिवार करीब टूट ही गया था. रियासत दो हिस्सों में बंट गई. ऐसा लगा कि प्यार हार गया लेकिन किस्मत का फेर देखिए, जो प्यार महाराजा के कारण ही उनके हाथ से फिसल गया, वो उन्हें फिर मिला. तब तक उनकी पहली शादी हो चुकी थी और दो बच्चे भी.

कौन थे राजा और कौन थी लड़की
महाराजा ओडिशा का नाम श्रीरामचंद्र भंज देव और लड़की थी सुचारु देवी. इस सच्ची कहानी में सबकुछ है – विरोध, विद्रोह, अलगाव, आंसू और सुखद पुनर्मिलन. ये प्रेम कहानी ओडिशा के भंज वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक महाराजा श्री राम चंद्र भंज देव के पत्रों, डायरियों और जीवनियों से भरे एक ट्रंक में मिली. उनकी संपत्ति में सुचारु देवी नामक एक बंगाली महिला को लिखे प्रेम पत्र भी शामिल थे.

कहां मिली थी राजा को वो लड़की
महाराजा श्री राम चंद्र भंज देव को आधुनिक ओडिशा के निर्माताओं में एक माना जाता है. वह दार्शनिक और दूरदर्शी राजा थे.1889 में श्रीरामचंद्र भंज देव राजा बनाए जाने से 03 साल पहले दार्जिलिंग गये हुए थे. वहीं एक समारोह में उन्हें वह लड़की मिली, जो उनके जीवन में प्यार बनकर आई. वह 18 साल के थे और वो 15 साल की. सुचारु ​19वीं सदी के बंगाल के दार्शनिक और समाज सुधारक ब्रह्म समाज के प्रसिद्ध नेता केशव चंद्र सेन की बेटी थीं.

दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन…
श्रीरामचंद्र ने सुचारु से शादी की पूरी तैयारी कर ली. दोनों ने नए जीवन के सपने भी देखने शुरू कर दिए थे. लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि वो ऐसा नहीं कर पाएंगे. श्रीरामचंद्र ने जब परिवार को बताया कि वे सुचारु से विवाह करना चाहते हैं तो वे हैरान रह गए. उस समय हिंदू धर्म के लोग ब्रह्म समाज में शादी करना अच्छा नहीं मानते थे. ये एक तरह से अंतर-धार्मिक विवाह होता. राजपरिवार में इसका इतना विरोध हुआ कि उन्हें शादी करने का इरादा छोड़ना पड़ा.

राजकुमार को परिवार की मर्जी से शादी करनी पड़ी
फिर राजकुमार ने सुचारु को माफ़ीनामा लिखा और रिश्ता तोड़ लिया. उन्होंने परिवार की परंपरा को निभाते हुए 1896 में पोराहाट (अब बिहार में) की हिंदू राजपूत राजकुमारी से पिता की मर्जी से शादी की उनकी पत्नी लक्ष्मी देवी ने दो बेटों और एक बेटी को जन्म दिया. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. राजा बन चुके श्रीरामचंद्र की रानी और बेटी चेचक से मर गईं.

और वो प्यार फिर मिला
अब उन्होंने पूरी तरह से खुद राज्य के विकास के कामों में झोंक दिया. पत्नी का निधन दुखी भी करता था और खालीपन का अहसास भी देता था. वह एक बार कोलकाता गए हुए थे. वहां एक पार्टी में वह फिर सुचारु से टकराए. करीब 14 सालों बाद. सुचारु ने अब तक शादी नहीं की थी. वह अब भी उन्हें प्यार करती थी. श्रीरामचंद्र ने तय कर लिया कि अब वह अपने प्यार को जिंदगी से नहीं जाने देंगे. उन्होंने शादी का प्रस्ताव रखा.

फिर विरोध लेकिन अबकी बार क्या हुआ
राजा के परिवार में फिर शादी का जबरदस्त विरोध हुआ. परिवारवाले नाराज हो गए. लेकिन अबकी बार उन्होंने तय कर लिया था कि शादी तो हर हाल में करेंगे. इस जोड़े ने 1904 में कलकत्ता में शादी कर ली. इसके बाद उन्होंने राज्य में स्कूल, अस्पताल बनवाए और टाटा के साथ मिलकर मयूरभंज में पहली लौह अयस्क और स्टील की खदान बनवाई.

सुचारु अब भी मुख्य महल में नहीं जा सकती थी
सुचारु से महाराजा को एक बेटा और दो बेटियां हुईं. हालांकि महाराजा अपनी इस रानी को कभी मयूरभंज महल में ले जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. लिहाजा उन्होंने कलकत्ता के मयूरभंज रोड पर रानी के लिए राजाबाग पैलेस बनवाया. मयूरभंज में एक खास गेस्ट हाउस बनवाया ताकि उनकी पत्नी कभी उनकी रियासत में आएं तो वहां ठहर सकें. क्योंकि महाराजा के माता-पिता जिंदा थे और उन्होंने महाराजा की रानी सुचारु पर महल में घुसने की रोक लगाई हुई थी.

खुशी टिक नहीं पाई
हालांकि सुचारु और महाराजा की खुशी ज़्यादा दिन नहीं टिक पाई. शादी के आठ साल बाद, जब वह ब्रिटिश प्रतिनिधियों और बहनोई के साथ शिकार पर गए थे तब उन्हें रहस्यमयी तरीके से गोली मार दी गई. वह बचाए नहीं जा सके. अस्पताल में लंबे इलाज के बाद मृत्यु हो गई. सुचारू जिंदा रहीं और उन्होंने कई बड़े काम किए.

क्या बड़े काम किए महारानी ने फिर
वह 1931 में बंगाल महिला शिक्षा लीग की अध्यक्ष थीं. अखिल बंगाल महिला संघ की भी अध्यक्ष थीं. कलकत्ता में लैंगिक समानता की दृढ़ समर्थक थीं. उन्होंने विरोध का सामना करने के बावजूद मयूरभंज रियासत की दिशा तय करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई. मयूरभंज को स्मार्ट सिटी की तर्ज पर तैयार किया गया. जल आपूर्ति नेटवर्क में सुधार किया. स्वास्थ्य सेवा पर काम किया.

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