1972 म्यूनिख ग्रीष्मकालीन ओलंपिक नरसंहार: वर्ष 1972 का म्यूनिख ओलंपिक। जर्मनी की सड़कें रोशनी से नहाई हुई थीं। हर तरफ चमक थी। इस ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के आयोजन के जरिए जर्मनी यह दिखाना चाहता था कि वह अब हिटलर के साये से पूरी तरह मुक्त हो चुका है। हालांकि, इस ओलंपिक में कुछ ऐसा हुआ, जिसे याद करके आज भी रूह कांप उठती है।
म्यूनिख ओलंपिक में क्या हुआ था?
म्यूनिख ओलंपिक का खेल गांव खिलाड़ियों से भरा हुआ था। जश्न और खुशी का माहौल था। 5 सितंबर 1972 की रात को 8 फिलिस्तीनी आतंकवादी ओलंपिक खेल गांव की ओर बढ़े। उनके कंधों पर भारी स्पोर्ट्स बैग और हाथों में चमचमाती कलाश्निकोव असॉल्ट राइफलें थीं। आतंकवादियों के इस समूह का नाम ‘ब्लैक सितंबर’ था। सुबह करीब 4 बजे आतंकवादी खेल गांव की बाउंड्री वॉल पर पहुंचे और 8 फीट ऊंची दीवार फांदकर खेल गांव में घुस गए। उस समय कुछ अमेरिकी एथलीट पूरी रात पार्टी करने के बाद अपने फ्लैट में लौट रहे थे। उनमें से ज्यादातर नशे में थे, इसलिए किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया।
इजरायली एथलीट निशाने पर थे
आतंकवादियों ने इजरायली एथलीटों के फ्लैटों की ओर धावा बोला। वे गहरी नींद में थे। आतंकवादियों ने पहले मास्टर चाबी से हॉल का दरवाजा खोला और फिर फ्लैट का गेट तोड़ना शुरू कर दिया। इसी बीच इजरायली कुश्ती टीम के रेफरी योसेफ गुटफ्रेंड की नींद खुल गई। जब उन्होंने दरवाजे की तरफ देखा तो देखा कि एक व्यक्ति के हाथ में कलाश्निकोव है। योसेफ को तुरंत समझ आ गया कि कुछ गड़बड़ है और उसने चिल्लाकर दूसरे एथलीटों को चेतावनी दी।
6 फीट 3 इंच लंबे और 140 किलो वजन वाले योसेफ ने पूरी ताकत से दरवाजे के पीछे खड़े होकर आतंकवादियों को रोकने की कोशिश की। करीब 10 सेकंड बाद आतंकवादी दरवाजा तोड़ने में सफल हो गए और सबसे पहले योसेफ को पकड़ लिया। इसके बाद वहां मौजूद दूसरे एथलीटों को बंदूक की बट से मारा और वे जमीन पर गिर पड़े।
पुलिस को कैसे मिली खबर?
इसके बाद अन्य फ्लैट्स को किनारे से नष्ट कर दिया गया, जिसमें इजरायली फ्लैट्स भी शामिल थे। करीब 25 मिनट तक कहते-कहते फिलिस्तीनी फिलिस्तीनियों ने दो इजरायली एथलीटों को जान से मार दिया और दो बूटों में सफल हो गए। 9 एथलीटों को बंदी बना लिया गया। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जो दो इजरायली एथलीट वहां से बचकर में सफल हो गए, उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया। चांद मिनट के भीतर जर्मन पुलिस खेल गांव में पहुंच गया।
सास-ससुर ने क्या खरीदा था?
पुलिस ने बातचीत शुरू की. इस बीच एक डाकू ने एक पेपर डाउन ब्लास्टर से एक रॉकेट बनाया, जिसमें अंग्रेजी में उनकी मांग लिखी हुई थी। सबसे पहला घोटाला यह था कि इजराइल और जर्मनी की जेल में बंद उनके 234 साथियों को तुरंत रिहा कर दिया गया और सुरक्षित जगह ले जाने के लिए प्लेन का दोषी ठहराया गया। इसके लिए सुबह 9:00 बजे तक की डेडलाइन जारी की गई। जर्मनी के चांसलर ने इजराइल के प्रधानमंत्री गोल्डा मायर को फोन करने और उन्हें एक्सट्रीमपंथियों की डकैती के बारे में बताया था, लेकिन उन्होंने ऐसी किसी मांग को लेकर तैयारी नहीं की।
जर्मनी ने खुद ही बंधकों को सरेंडर करने की योजना बनाई थी।
इसके बाद जर्मन सरकार ने खुद ही बंधकों को सरेंडर करने की योजना बनाई। फ्रांस ने अपने विमान का डिजाइन तैयार करवाया। तय हुआ कि जब इजरायली हमलावर बंधकों को पकड़कर मिस्र ले जाएंगे, उसी समय जर्मन कमांडो उन्हें पकड़ लेंगे। हालांकि जर्मनी की यह योजना बुरी तरह फेल हो गई। जब बंधकों को हेलिकॉप्टर से एयरपोर्ट ले जाया गया तो उन्हें खबर मिली कि जो विमान उन्हें मिस्र ले जाने के लिए इंतजार कर रहा है, उसमें पायलट ही नहीं है। उन्हें लगा कि अब उनका आखिरी वक्त आ गया है और उन्होंने उस हेलिकॉप्टर में ग्रेनेड फेंक दिया जिसमें बंधक थे। कुछ ही देर में हेलिकॉप्टर आग के गोले में बदल गया और सभी 9 इजरायली समर्थक मारे गए।
इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के प्रमुख जुजी जमीर एयरपोर्ट की बिल्डिंग की पूरी घटना देख रहे थे. वह भी कुछ नहीं कर पा चाहता है. उन्होंने प्रधानमंत्री गोल्डा मायर को फोन किया और कहा कि मेरे पास बहुत बुरी खबर है। मेरे हाथ से फोन छूटकर नीचे गिर गया।
तुलना से ‘असली’ मोसाद का जन्म
म्यूनिख ओलिंपिक (म्यूनिख ग्रीष्मकालीन ओलंपिक) में इस तरह अपने खिलाड़ियों की बेरहम हत्या से इजराइल आग बबूला था। संसद में सभी शेयरधारकों की बैठकें आयोजित की गईं। प्रधानमंत्री गोल्डा मायर ने उग्रवादियों के खिलाफ ‘युद्ध’ की शुरुआत में अपनी आवाज दी। संसद में मौजूद हर एक शख्स ने उनका समर्थन किया. इसके बाद शियाटन से अदला-बदली के लिए एक खुफिया मिशन शुरू किया गया। जिसका नाम रखा गया था ‘रथ ऑफ गॉड’ यानी ईश्वर का कॉप।
इजराइली सरकार ने मोसाद को पूरी तरह से छूट दे दी और ईसाइयों ने कहा कि दुनिया में गद्दार हों, जहां पैसा खर्च करना पड़े, उन्हें शेयर करना ही है। इस इंप्लायंस का रिपब्लिकन माइक हरारी को बनाया गया था। इसके बाद ‘असली’ मोसाद का जन्म हुआ। 16 अक्टूबर 1972 को सबसे पहले टार्गेट को ख़त्म किया गया। इसके अलावा कुछ अन्य चीज़ों में मोसाद ने यूरोप से लेकर मध्य पूर्व के अलग-अलग देशों में मछुआरों को चुना चुनाकर शामिल किया।