Friday, October 18, 2024
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दिल्ली के मशहूर पांच सितारा होटलों को अब सरकार को क्यों देने होंगे करोड़ों रुपए?

केंद्र सरकार ने नई दिल्ली के कई प्रतिष्ठित फाइव स्टार पार्टिसिपेट को सार्वजनिक करते हुए जमीन के वैश्विक उद्योग को बढ़ावा दिया है। कई आदर्शों को अब लाखों के बदले करोड़ों रुपये चुकाने होंगे। केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ कम से कम दो चैलेंज – द इंपीरियल (द इंपीरियल होटल) और डेरिजेस (द क्लेरिजेस दिल्ली) ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

आइए आपको बताते हैं कि दिल्ली के फाइव स्टार होटल्स (फाइव स्टार होटल्स) को कब और कैसे किराए पर दिया गया, अभी तक कितनी कमाई की गई थी और होटल रिजर्वेशन ने सरकार के कदम को चुनौती क्यों दी है?

आख़िर को कब और मिली दी ज़मीन?

वर्ष 1911 में जब ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने ब्रिटिश हुकूमत की राजधानी (अब कोलकाता) से नई दिल्ली में जगह बनाना बंद कर दिया तो सरकार ने भूमि अधिग्रहण के लिए नई इमारत का निर्माण शुरू किया। जिनपर काउंसिल हाउस (जो आजादी के बाद संसद बनी) जैसी बिल्डिंग बनी। नई नवेली राजधानी के अधिग्रहण में वैष्णवी के निर्माण के लिए भूमि उत्खनन भी शामिल था। होटल सुपरवाइजर को ये जमीन स्थायी आवंटन या परपेचुअल लीज पर दी गई। ग्राउंड के बदले में वार्षिक उद्यमिता स्थापित की गई, जो हर 30% पर विपणन योग्य थी।

क्या थी लीज की शर्त?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने होटल के लिए जो जमीन दी, उनमें से सबसे बड़े बिजनेसमैन और ऐसे में अन्य सरकारी निर्माण बोर्ड पर काम किया गया। आवंटन की सूची में यह भी कहा गया है कि जमीन का उपयोग केवल होटल के लिए ही किया जाएगा और जमीन का उपयोग केवल होटल के लिए ही किया जाएगा और निर्माण की लागत आवंटन को वहन किया जाएगा।

उदाहरण के तौर पर इंपीरियल होटल का मामला देखा गया, जहां 8 अप्रैल, 1932 को जनपथ लेन पर 7.938 ओक ग्राउंड, एसबीएस शांति सिंह को पवित्र स्थान पर रखा गया था। अज्ञात की तारीख 9 जुलाई, 1937 थी। इस सूची में अनमोल सिंह का उल्लेख एक “ठेकेदार” और एन लोन रोड के कांट्रेक्टर आरबीएस नारायण सिंह के बेटे के रूप में किया गया है। लीज़ में ज़मीन का स्टोर प्रति वर्ष 1,786 रुपये का था और पहली बार वर्ष 1962 में किराए में संशोधन हुआ था।

इसी तरह, डॉ. पहले एपीजे अब्दुल कलाम रोड (औरंगजेब रोड के नाम से जाना जाता था) पर द क्लेरिजेस होटल के लिए 12 नवंबर 1936 को 2.94 बजे ओकरा ग्राउंड लाला जुगल टीन को दर्शन दिया गया था। बिज़नेस का स्टोर 470 रुपये में बिका और 1 जनवरी, 1961 को इसे बाज़ार में लाया गया। वर्ष 1972 में यह ग्राउंड क्लेरिजेस होटल प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना हुई और 1976 में इसका नाम बदलकर एमएस लीज कर दिया गया।

ज़मीन का मालिक कैसे बना?

वैज्ञानिकों के अनुसार जमीन के भाव की गणना, जमीन के मूल्य के आधार पर होनी थी। इसमें जमीन पर बनी इमारत की कीमत शामिल नहीं थी। यह भी तय किया गया कि एनुअल बिजनेसमैन, पत्रिका पर हस्ताक्षर करने का समय और बाद में संशोधन के समय में भी, जमीन की कुल कीमत के अनुरूप से अधिक नहीं होगा। भाले का आकलन दिल्ली के अहिंसात्मक या वैध द्वारा जाना गया था।

कितने लाख में पहुंच किराया?

केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ जो दो होटल दिल्ली के उच्च न्यायालयों में हैं, उन्हें इंपीरियल के लिए जमीन का 1972 में 10,716 रुपये का कर दिया गया था और यह 2002 तक मनी था। लीज़ की ऑटोमोबाइल्स के अनुसार 2002 में फिर से रेंट रिवाइज़न हुआ था, लेकिन अगले 30 साल की अवधि (2002 से 2032 तक) फिर से ओल्ड एंटरप्राइज़ ही तय कर दिया गया। हालांकि केंद्र ने मार्च में 8.13 करोड़ रुपये कर दिया। इसी तरह, 2016 में द क्लेरिजेस की जमीन का बिजनेस 2.13 लाख रुपये से बढ़कर 8.53 लाख रुपये प्रति वर्ष हो गया था। होटल प्रबंधन के अनुसार वर्ष 2046 तक ये व्यापारी बने रहे थे। हालांकि सरकार ने क्लेरिजेस का लाइसेंस भी सालाना 3.85 करोड़ रुपये कर दिया है.

अब किस बात पर विवाद?

केंद्र सरकार के फैसले पर विवाद की सबसे बड़ी वजह यह है कि दोनों होटलों को उस तारीख से बढ़ा हुआ व्यापारी चुकाना होगा, जिस तारीख पर किराया समीक्षा दी गई थी। जैसे इंपीरियल होटल को 2024 की जगह 2022 से एंटरप्राइज़ देना होगा। तो द क्लेरिजेस को भी 2006 से अब तक का लोन चुकाना होगा। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक द इंपीरियल होटल को 2002 से 2024 तक के किराये के रूप में 177.29 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है तो द क्लेरिजेस को 69.37 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। होटल अनइंस्टॉल का तर्क है कि रेंट रिवाइज़न लीज़ की ओरिजिनल स्टोरेज का उल्लंघन है। कोई भी रिवीजन पेंडिंग नहीं था, इसलिए इस तरह के नोटिस का मतलब भी नहीं बनता।

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