Friday, November 22, 2024
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हाथरस: कौन हैं साकार हरि जिनके सत्संग में मची भगदड़ और 60 लोगों की चली गई जान

यूपी के हाथरस में मंगलवार को एक दर्दनाक हादसा सामने आया जिसमें 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। ये हादसा तब हुआ जब सत्संग का समापन के बाद लोग लौट रहे थे। जानिए कौन हैं साकार हरि जिनके सत्संग में ये हादसा हुआ?

उत्तर प्रदेश के हाथरस के एटा में नारायण साकार हरि के सत्संग में तब भगदड़ मच गई, जब लोग सत्संग सुनने आए थे। हादसे में अबतक 60 से ज्यादा लोगों की मौत की खबर है। मृतकों की संख्या अभी बढ़ सकती है। मृतकों में ज्यादातर बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं शामिल हैं। मिली जानकारी के मुताबिक हाथरस के फुलरई गांव में नारायण साकार हरि का आश्रम है जहां सत्संग आयोजित किया गया था। सत्संग वाली जगह छोटी थी और भीड़ बहुत ज्यादा थी और भीड़ अनियंत्रित हो गई और भगदड़ मच गई।

जानकारी के अनुसार यह सत्संग संत भोले बाबा का बताया जा रहा है। संत भोले बाबा का प्रवचन सुनने के लिए हाथरस एटा बॉर्डर के पास स्थित रतीभानपुर में बहुत बड़ी संख्या में लोग आश्रम में पहुंचे थे। मौसम की वजह से पंडाल में भयानक उमस और गर्मी थी और इसके कारण भगदड़ जैसी स्थिति बन गई थी और इसी भगदड़ में इतने लोगों की जान चली गई।

कौन हैं नारायण हरि, छोड़ी आईबी की नौकरी

जिनके सत्संग में ये हादसा हुआ उनका नाम नारायण हरि है और कहा जा रहा है कि उनका कनेक्शन सियासत से भी है। कुछ मौकों पर यूपी के कई बड़े नेताओं को उनके मंच पर देखा जा चुका है। नारायण साकार हरि मूल रूप से उत्तर प्रदेश के एटा जिले के बहादुर नगरी गांव के रहने वाले हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा यहीं हुई है। पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने आईबी यानी गुप्तचर विभाग की नौकरी कर ली और काफी समय तक नौकरी में रहे, फिर आध्यात्म की तरफ मुड़ गए। आध्यात्मिक जीवन में आने के बाद उन्होंने अपना नाम बदल लिया और नारायण साकार हरि के नाम से जाने जाने लगे।

नारायण साकार हरि और बाबाओं की तरफ गेरुआ वस्त्र या कोई अलग पोशाक नहीं पहनते हैं। वह अक्सर सफेद सूट, टाई और जूते में नजर आते हैं तो कई बार कुर्ता-पाजामा पहने भी दिखते हैं। साकार हरि अपने समागम में खुद बताते हैं कि नौकरी के दिनों में उनका मन बार-बार आध्यात्म की तरफ भागता था। नौकरी के बीच उन्होंने निस्वार्थ भाव से भक्तों की सेवा का कार्य शुरू कर दिया। फिर इसी रास्ते पर चल पड़े।

साकार हरि ने बताया कि 1990 के दशक में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और आध्यात्म में रम गए। उनके समागम में जो भी दान, दक्षिणा, चढावा वगैरह आता है, उसे अपने पास नहीं रखते बल्कि भक्तों में खर्च कर देते हैं।

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