Sunday, June 1, 2025
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बांग्लादेश पर भारत का अगला रुख क्या होगा? जानिए JNU और जामिया मिलिया के प्रोफेसरों की राय

बांग्लादेश में हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता के हालात पर पूरी दुनिया की नजर है। पड़ोसी देश होने के नाते भारत पर भी इसका सीधा असर पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने भी बांग्लादेश के ताजा राजनीतिक हालात पर आज सर्वदलीय बैठक बुलाई है और सभी दलों को वहां के हालात से अवगत कराया है। इस बैठक में पीएम मोदी के साथ विपक्ष के नेता राहुल गांधी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत को आगे क्या करना चाहिए? क्या भारत को आगे बढ़कर मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए या फिर पश्चिमी देशों के कदमों का इंतजार करना चाहिए? जेएनयू और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के एकेडमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के विशेषज्ञों ने इस मुद्दे पर अपनी अहम राय दी है। जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के एकेडमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर मोहम्मद सोहराव कहते हैं, ‘देखिए, बांग्लादेश में जो हालात पैदा हुए हैं, वो पूरी तरह से अंदरूनी हैं। वहां पिछले कई सालों से शेख हसीना के शासन को लेकर सवाल उठ रहे थे। विपक्षी दल चुनावों में हिस्सा नहीं ले रहे थे। शेख हसीना सरकार की कई नीतियों का विरोध शुरू हो रहा था। चाहे जो भी हो, भारत भी बांग्लादेश में शांति चाहता है। बांग्लादेश के तेज विकास के लिए शांति जरूरी है। मेरी राय में भारत को किसी भी पार्टी या नेता से हमदर्दी रखे बिना बांग्लादेश के विकास के लिए खड़ा होना चाहिए। यह भारत के लिए अच्छा होगा। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के साथ भी भारत के अच्छे संबंध थे। इसमें कोई शक नहीं है कि बांग्लादेश में बनने वाली कोई भी सरकार भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहेगी।’

भारत का अगला कदम क्या होगा?

प्रोफेसर सोहराब कहते हैं, ‘देखिए, शेख हसीना सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। मैं आपको बता दूं कि पड़ोसी देशों, खासकर म्यांमार के भारत के साथ रिश्ते कभी भी भरोसेमंद नहीं रहे हैं। शेख हसीना के मन में यह बात थी कि वह सेना की मदद से स्थिति को नियंत्रित कर पाएंगी। लेकिन, जब सेना ने उनका साथ नहीं दिया, तो उन्हें देश छोड़ना पड़ा। सेना प्रमुख शेख हसीना के करीबी रिश्तेदार हैं। मुझे जानकारी मिली है कि बहुत कम समय में उन्हें पदोन्नत करके सेना प्रमुख बना दिया गया। लेकिन, अब वह सरकार के खिलाफ हो गए हैं। नतीजा आपके सामने है। मुझे लगता है कि भारत को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। भारत को आक्रामक भूमिका निभानी चाहिए। भारत को बांग्लादेश में राजनीतिक नैरेटिव सेट नहीं करना चाहिए, बल्कि जो नैरेटिव सेट करते हैं, उनकी मदद करनी चाहिए। मेरी राय में, वहां जो भी सरकार बनेगी, भारत के साथ उसके रिश्ते अच्छे रहेंगे।’

जेएनयू के प्रोफेसर संजय के भारद्वाज कहते हैं, ‘देखिए, पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश में भ्रष्टाचार बढ़ा है। पिछले दो चुनावों में लोगों की भागीदारी बहुत कम रही। केवल 40 प्रतिशत लोग ही चुनाव में हिस्सा ले रहे थे। विपक्षी दलों पर नतीजों को मैनेज करने का आरोप लगा। स्थानीय चुनावों में कई अनियमितताएं पाई गईं। लोकतांत्रिक चुनावों की जगह भाई-भतीजावाद हावी हो गया। राजनीति में भाई-भतीजावाद की शिकायतें बड़े पैमाने पर बढ़ने लगी थीं। शेख हसीना ने इस पर ध्यान नहीं दिया। रोजगार और शिक्षण संस्थानों में भ्रष्ट लोगों का बोलबाला था। इन सभी समस्याओं ने मिलकर एक बड़ी घटना को अंजाम दिया। स्थिति यहां तक ​​पहुंच गई कि प्रधानमंत्री को पद छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।’

क्या भारत को मध्यस्थता करनी चाहिए?

भारद्वाज आगे कहते हैं, देखिए, भारत को अब बांग्लादेश के हालात पर नजर रखनी चाहिए। मेरी राय में भारत बांग्लादेश में उस नेता या समूह के समर्थन में खड़ा होगा जिसे पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त है। भारत उम्मीद करेगा कि बांग्लादेश में जल्द ही शांति और स्थिरता स्थापित हो। क्योंकि बांग्लादेश में भारत की हजारों करोड़ रुपये की कई परियोजनाएं चल रही हैं। ऐसे में भारत सरकार को वहां के हालात पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और जरूरत के हिसाब से कदम भी उठाने चाहिए।’

कुल मिलाकर बांग्लादेश में बदलाव का बिगुल बजने से भारत भी सतर्क हो गया है। बांग्लादेश में छात्रों के गुस्से ने शेख हसीना सरकार को गिरा दिया। ऐसे में भारत समेत कई पड़ोसी देशों के हित में यही है कि बांग्लादेश में जल्द ही शांति स्थापित हो और वहां एक स्थिर सरकार बने। हालांकि, मौजूदा हालात जो बन रहे हैं, वे लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकते हैं।

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