देश में बिगड़ते हालात के बीच शेख हसीना को आखिरकार इस्तीफा देना पड़ा। ऐसी खबरें हैं कि वह बांग्लादेश छोड़कर विदेश में सुरक्षित जगह पहुंच गई हैं। आखिर वो कौन सी वजहें हैं जिनकी वजह से हाल के दिनों में बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ गुस्सा बढ़ता गया, वह अलोकप्रिय होती गईं। इसकी वजह से देश में ऐसे हालात पैदा हुए, जिसने उनकी गद्दी को हिलाकर रख दिया।
बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार को अपने लंबे कार्यकाल के दौरान कई नकारात्मक चीजों का सामना करना पड़ा है। हाल के दिनों में उन पर विपक्ष को दबाने और तानाशाही करने के भी आरोप लगे। देश में एक महीने से ज्यादा समय से आंदोलन चल रहा था। आंदोलन की शुरुआत सबसे पहले छात्रों के लिए नौकरियों में कोटा के विरोध में हुई, लेकिन फिर यह शेख हसीना सरकार के खिलाफ व्यापक गुस्से में बदल गया। इसमें समाज के हर वर्ग के लोग शामिल थे। माना जाता है कि पर्दे के पीछे विपक्ष की एकता ने इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
शेख हसीना कुल मिलाकर करीब 15 साल तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं। उनका पहला कार्यकाल जून 1996 से जुलाई 2001 तक चला। वे लगातार चुनाव जीतने के बाद 6 जनवरी 2009 से पद पर हैं। वे बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाली प्रधानमंत्री थीं, लेकिन समय के साथ वे तानाशाह भी बन गईं।
1. असहमति का दमन
हसीना के प्रशासन पर विपक्षी आवाज़ों और असहमति को व्यवस्थित रूप से दबाने का आरोप लगाया गया है। सत्ता में उनके लंबे शासनकाल में विपक्षी नेताओं की गिरफ़्तारी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दमन और असहमति के दमन की घटनाएँ देखी गईं। उन्होंने विरोध प्रदर्शनों को दबाने के साथ-साथ विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हाल के विरोध प्रदर्शनों पर उनकी सरकार की प्रतिक्रिया भी विशेष रूप से हिंसक रही है, जिसमें प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ अत्यधिक बल प्रयोग की रिपोर्टें हैं, जिससे बड़े पैमाने पर लोग हताहत हुए हैं।
2. लोकतांत्रिक मानदंडों को खत्म करना
आलोचकों का तर्क है कि हसीना की सरकार ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संस्थाओं को कमज़ोर किया है। उनके कार्यकाल के दौरान चुनाव धांधली और हिंसा के आरोपों से घिरे रहे हैं। सरकारी एजेंसियाँ उनके इशारे पर साजिश रचकर विपक्षी नेताओं को जेल में डालती रहीं या उनके खिलाफ कई मामले दर्ज करती रहीं। कुल मिलाकर पुलिस और दूसरी सरकारी एजेंसियों ने विपक्षी नेताओं को फंसाने का काम ज्यादा किया। निष्पक्षता को लेकर चिंताओं के कारण प्रमुख विपक्षी दलों ने इस बार भी चुनावों का बहिष्कार किया। इससे देश में अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई। काफी समय से अंदर ही अंदर गुस्सा पनप रहा था।
3. मानवाधिकार उल्लंघन
हसीना की सरकार में मानवाधिकार उल्लंघन की कई रिपोर्टें आई हैं, जिनमें लोगों को जबरन गायब करना और न्यायेतर हत्याएं शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इन उल्लंघनों का दस्तावेजीकरण किया है, जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी देशों ने इन उल्लंघनों में शामिल कुछ सुरक्षा बलों के खिलाफ प्रतिबंध लगाए हैं।
4. नौकरियों में आरक्षण
हाल ही में शेख हसीना सरकार ने उन लोगों को नौकरियों में कोटा दिया था, जिनके परिवारों ने 1971 में देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। इसके खिलाफ छात्रों का गुस्सा भड़क उठा। कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन होने लगे। छात्रों का यह विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया। हिंसा हुई। हालांकि बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने इस कोटे को खत्म कर दिया, लेकिन तब तक पूरा देश जल चुका था। विपक्ष ने भी इस आंदोलन को हवा दी। नतीजतन, बांग्लादेश में गुस्सा और बढ़ गया। पिछले तीन दिनों से ऐसा लग रहा था कि बांग्लादेश में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं है। बड़े पैमाने पर हिंसा, आगजनी और अराजकता फैली हुई थी।
5. मीडिया सेंसरशिप
हसीना प्रशासन को प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है। सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स को अक्सर उत्पीड़न, कानूनी कार्रवाई या बंद का सामना करना पड़ता है। इससे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। कई लोग सरकारी गतिविधियों पर रिपोर्टिंग करने के लिए प्रतिकूल परिणामों से डरने लगे।
हसीना एक “स्मार्ट” राजनेता हैं, लेकिन अब इतिहास उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में याद रखेगा “जो लोकप्रिय जनादेश के माध्यम से नहीं, बल्कि दमन के माध्यम से सत्ता में बनी रही।” बाद में वह खुद देश के गुस्से का शिकार हो गईं और उन्हें एक अलोकप्रिय तानाशाह की तरह देश छोड़कर भागना पड़ा।