भारत के राजनीतिक पटल पर अमिट छाप छोड़ने वाली सुषमा स्वराज का हर कोई मुरीद था। उनका 41 साल का राजनीतिक जीवन कई उपलब्धियों से भरा रहा। 6 अगस्त को सुषमा स्वराज का निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली एम्स में अंतिम सांस ली।
सुषमा स्वराज उस विदेश मंत्री का नाम है जिन्होंने कार्यभार संभालते ही मंत्रालय की सूरत बदल दी। उनके मंत्री रहने के दौरान इस विभाग को आम भारतीय का विभाग कहा जाने लगा। मंत्री जी जितनी सरल थीं, उतनी ही अपने काम के प्रति समर्पित और सख्त भी। चाहे पाकिस्तान की बेबस गीता हो या खूंखार आतंकियों के बीच फंसे भारतीयों की वापसी, उन्होंने हर किसी तक अपनी बात पहुंचाई। ऐसी शख्सियत कि आज भी जब हम उन्हें याद करते हैं तो हमारी आंखें भर आती हैं और भारत का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है।
6 अगस्त को दिल्ली एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली
भारत के राजनीतिक पटल पर अमिट छाप छोड़ने वाली सुषमा स्वराज का हर कोई मुरीद था। उनका 41 साल का राजनीतिक जीवन उपलब्धियों से भरा रहा। सुषमा स्वराज भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और प्रखर वक्ता थीं। 6 अगस्त को सुषमा स्वराज का निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली एम्स में अंतिम सांस ली।
अगर आपको सुषमा स्वराज को समझना है तो आप ट्विटर पर स्क्रॉल कर सकते हैं। यूक्रेन युद्ध के दौरान जब भारतीय छात्र फंसे हुए थे, तब उनका एक ट्वीट वायरल हुआ था। उनमें से एक में लिखा था कि अगर कोई भारतीय मंगल ग्रह पर भी फंसा हुआ है, तो विदेश मंत्रालय उसकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करेगा। ऑपरेशन राहत, ऑपरेशन संकटमोचक ऐसे सफल अभियान हैं जो हमें सुषमा स्वराज की क्षमताओं से परिचित कराते हैं। राजनीति के आसमान में सितारा बनी इस जुझारू नेता से जुड़ी कई कहानियां हैं।
वह जितनी प्रोफेशनल थीं, उतनी ही आम गृहिणी भी थीं
वह जितनी प्रोफेशनल थीं, उतनी ही आम गृहिणी भी थीं। करवा चौथ के दिन उनके भव्य उत्सव को कौन भूल सकता है! जो परंपरा और जड़ों से जुड़े रहने का एक अद्भुत उदाहरण था। स्वराज की गिनती भारत की प्रमुख महिला राजनीतिक नेताओं में होती थी। शुरुआती दिनों में वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सक्रिय सदस्य थीं और जेपी आंदोलन के साथ-साथ आपातकाल के दौरान भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
हरियाणा की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री होने का रिकॉर्ड
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों की उनकी गहरी समझ ने उन्हें भारतीय और वैश्विक राजनीति का एक महत्वपूर्ण चेहरा बना दिया। देश की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री, दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का उनका सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा। हरियाणा की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री होने का रिकॉर्ड उनके नाम है। देवीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार में वह महज 25 साल की उम्र में देश की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनीं। वह दो बार हरियाणा विधानसभा की विधायक रहीं। इसके बाद 1979 में वह चार साल तक हरियाणा जनता पार्टी की प्रदेश इकाई की अध्यक्ष भी रहीं।
आइये जानते हैं सुषमा स्वराज के सियासी सफर के बारे में-
- 1980 में सुषमा स्वराज भाजपा में शामिल हुईं और उन्हें पार्टी का सचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने दो साल तक पार्टी के अखिल भारतीय सचिव का पद संभाला और पार्टी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। 1990 में स्वराज को राज्यसभा का सदस्य चुना गया। इसके बाद 1996 अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली 13 दिन की भाजपा सरकार के दौरान उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया। सात बार सांसद रह चुकी सुषमा स्वराज का यह लोकसभा सदस्य के रूप में दूसरा कार्यकाल था।
- 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई, तो वह एक बार फिर सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं। इसी बीच 1998 में कम समय के लिए दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री चुनी गई थीं। लगभग तीन महीने के उनके छोटे कार्यकाल के दौरान प्याज की बढ़ती कीमत को लेकर उनकी काफी आलोचना हुई थी।
- 1999 के लोकसभा चुनाव में स्वराज ने कर्नाटक के बेल्लारी से तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि, वह हार गईं, लेकिन उनका कद बढ़ गया। वाजपेयी सरकार के तीसरे कार्यकाल में 2003 से मई 2004 तक उन्होंने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री के साथ-साथ संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
- 2004 में यूपीए के सत्ता में आने पर सोनिया गांधी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आ रहा था, जिसका सुषमा स्वराज ने जोरदार विरोध किया। उन्होंने कसम खाई कि अगर सोनिया गांधी शपथ लेती हैं तो वह अपना सिर मुंडवा लेंगी और अपना पूरा जीवन एक भिक्षुक की तरह बिताएंगी। उनका मानना था कि अगर आजादी के बाद कोई विदेशी देश का नेतृत्व करेगा तो यह समृद्ध लोकतांत्रिक परंपरा का अपमान होगा। हालांकि, सुषमा स्वराज को ऐसा कुछ नहीं करना पड़ा, क्योंकि सोनिया गांधी की जगह डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया।
- उन्हें भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी का करीबी माना जाता था। स्वराज ने एक बार फिर इतिहास रच दिया जब वह अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी की जगह 2009 में विपक्ष की पहली महिला नेता बनीं। वह 2014 तक इस पद पर रही। 2014 में पहली बार मोदी सरकार बनने के बाद उन्हें विदेश मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। सात बार संसद सदस्य के रूप में चुनी गईं स्वराज इंदिरा गांधी के बाद भारत की दूसरी महिला विदेश मंत्री थी।
- बतौर विदेश मंत्री 2015 में यमन में सऊदी गठबंधन सेना और हौथी विद्रोहियों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था। उस दौरान ऑपरेशन राहत चलाया और 5,000 भारतीयों की वतन वापसी सुनिश्चित की। ऐसे ही सबकी जुबान पर अब भी ऑपरेशन संकटमोचक का नाम रहता है। 2016 में दक्षिण सूडान के युद्ध में फंसे भारतीयों के लिए इसे चलाया गया और इसके तहत करीब 500 लोगों को भारत लाया गया था। ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो बताते हैं कि स्वराज विदेश में फंसे अपने देश के लोगों को लेकर कितनी फिक्रमंद रहती थीं।
- विदेश मंत्री के पद पर रहने के दौरान उन्होंने भारत की कूटनीति का बेहतर संचालन करते हुए मानवीय व्यवहार की मिसाल कायम की। पांच सालों के अपने कार्यकाल के दौरान वो ट्विटर के जरिए हमेशा आम भारतीयों के साथ खड़ी दिखीं। भारत को कूटनीतिक स्तर पर मजबूती मिली। स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझते हुए 67 साल की उम्र में सुषमा स्वराज का निधन हो गया।