Friday, October 18, 2024
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, चुनिंदा एसटी-एससी जातियों के लिए अधिक आरक्षण का रास्ता साफ

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य चुनिंदा जातियों को ज्यादा आरक्षण दे सकेंगे। अब राज्यों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में शामिल जातियों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटने का अधिकार होगा।

आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए 2004 में ईवी चिन्नैया केस में दिए गए 5 जजों के फैसले को पलट दिया है. 2004 में दिए गए उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी/एसटी जनजातियों के बीच उप-श्रेणियां नहीं बनाई जा सकतीं. अब सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ ने बहुमत से फैसला दिया है कि राज्य सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में वे सभी श्रेणियां बना सकती है (जिन श्रेणियों को अधिक आरक्षण का लाभ मिलेगा।

भारतीय संविधान के अनुसार देश की जनसंख्या मूल रूप से अलग-अलग जातियों के आधार पर चार वर्गों (सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति) में विभाजित है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर कई वर्ग बनाए जा सकेंगे। ऐसे में राज्य सरकारें अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आने वाले किसी एक वर्ग को अधिक आरक्षण का लाभ दे सकेंगी।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला सुनाया। जस्टिस बेला त्रिवेदी के अलावा अन्य छह जजों का मानना ​​था कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि उप-वर्गीकरण का आधार राज्य के सही आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए, इस मामले में राज्य अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता। हालांकि, आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में दिक्कत होती है। जस्टिस बीआर गवई ने सामाजिक लोकतंत्र की जरूरत पर बीआर अंबेडकर के भाषण का हवाला दिया। जस्टिस गवई ने कहा कि पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है, एससी/एसटी वर्ग के कुछ ही लोग आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि एससी/एसटी के भीतर भी श्रेणियां हैं, जो सदियों से उत्पीड़न का सामना कर रही हैं। उप-वर्गीकरण का आधार यह है कि बड़े समूह में से एक समूह को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

क्रीमी लेयर की तुलना मैनुअल स्कैवेंजर के बच्चे से नहीं की जा सकती

जस्टिस बीआर गवई ने अपने अलग लेकिन सहमति वाले फैसले में कहा कि राज्यों को एससी-एसटी श्रेणियों से क्रीमी लेयर को भी बाहर कर देना चाहिए। अपने फैसले के समर्थन में उनकी ओर से कहा गया कि अनुसूचित जाति के क्रीमी लेयर (संपन्न वर्ग) के बच्चों की तुलना गांव में मैला ढोने वाले अनुसूचित जाति के व्यक्ति के बच्चों से करना बेईमानी होगी। न्यायमूर्ति बी आर गवई ने बाबा साहब अंबेडकर का एक कथन पढ़ा कि इतिहास बताता है कि जब नैतिकता अर्थव्यवस्था से टकराती है, तो अर्थव्यवस्था जीत जाती है।

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