सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी व्यापक शक्तियों का प्रयोग करते हुए BMW 7-सीरीज कार से जुड़े 15 साल पुराने एक असामान्य विवाद को सुलझाया, क्योंकि कार की डिलीवरी के समय उसमें खामियां पाई गई थीं और खरीदार ने BMW इंडिया और निदेशकों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया था।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कार को 25 सितंबर, 2009 को हैदराबाद के एक डीलर से GVR इंफ्रा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड नामक फर्म ने खरीदा था, लेकिन जब वाहन को शोरूम से मालिक के घर ले जाया जा रहा था, तब उसमें गंभीर खामी देखी गई। कार की मरम्मत की गई, लेकिन तीन महीने बाद फिर से समस्या सामने आ गई। निराश खरीदार ने BMW इंडिया, उसके प्रबंध निदेशक और अन्य निदेशकों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन पर खराब कार देकर उसे धोखा देने का आरोप लगाया गया। BMW ने धोखाधड़ी की एफआईआर को रद्द करने के लिए तेलंगाना उच्च न्यायालय का रुख किया।
23 मार्च 2012 को, उच्च न्यायालय ने BMW के खिलाफ अभियोजन को खारिज कर दिया और स्वतः संज्ञान लेते हुए कार निर्माता को खराब कार को नई कार से बदलने का आदेश दिया। बीएमडब्ल्यू ने हाईकोर्ट के आदेश को स्वीकार कर लिया और खराब कार को नई कार से बदलने पर सहमति जताई। हालांकि, खरीदार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। खरीदार ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
बुधवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि इतने लंबे समय के बाद धोखाधड़ी के मामले को जारी रखना न्याय के खिलाफ होगा। उन्होंने कहा कि बीएमडब्ल्यू इंडिया ने 2012 में ही खराब कार को नई कार से बदलने की पेशकश की थी, जिसे खरीदार ने अस्वीकार कर दिया और पैसे वापस मांगे।
कोर्ट ने कहा कि पुराने मामले को आगे बढ़ाना उचित नहीं होगा, लेकिन मुआवजा जरूरी है। पिछले कुछ सालों में कार की कीमत में आई गिरावट को देखते हुए उन्होंने खरीदार के लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा उचित माना।
आपको बता दें कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को ऐसे आदेश या डिक्री पारित करने की शक्ति देता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो।