गैर सरकारी संगठनों कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन तथा अन्य द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुनावी बांड योजना की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई थी।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चुनावी बॉन्ड योजना की अदालत की निगरानी में जांच का अनुरोध करने वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस स्तर पर हस्तक्षेप अनुचित और समय से पहले होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस धारणा पर चुनावी बॉन्ड की खरीद की जांच का आदेश नहीं दे सकता कि यह एक तरह का अनुबंध देने के लिए लेनदेन था। आपको बता दें कि इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था।
याचिकाओं को खारिज करते हुए कोर्ट ने यह कहा
पीठ ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा, ‘अदालत ने चुनावी बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार किया क्योंकि इसमें न्यायिक समीक्षा का पहलू था। लेकिन आपराधिक अनियमितताओं से संबंधित मामलों को अनुच्छेद 32 के तहत नहीं लाया जाना चाहिए, जब कानून के तहत उपचार उपलब्ध हैं।’ सुप्रीम कोर्ट गैर सरकारी संगठनों ‘कॉमन कॉज’ और ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। दोनों गैर सरकारी संगठनों की जनहित याचिका में इस योजना की आड़ में राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच स्पष्ट मिलीभगत का आरोप लगाया गया था।
15 फरवरी को चुनावी बॉन्ड योजना रद्द कर दी गई थी
आपको बता दें कि दोनों गैर सरकारी संगठनों की जनहित याचिका में राजनीतिक दलों और कंपनियों के बीच ‘स्पष्ट लेनदेन’ का आरोप लगाया गया था। चुनावी बॉन्ड योजना को ‘घोटाला’ करार देते हुए याचिका में अधिकारियों को विभिन्न राजनीतिक दलों को दान देने वाली ‘शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों’ के वित्तपोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने 15 फरवरी को ‘चुनावी बॉन्ड योजना’ को रद्द कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने चुनाव आयोग के साथ आंकड़े साझा किये थे, जिन्हें बाद में आयोग ने सार्वजनिक कर दिया।