Sunday, February 16, 2025
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58 साल पहले RSS पर क्या लगा था बैन, इंदिरा गांधी ने क्यों दिया था ये आदेश? जानिए इनसाइड स्टोरी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर लगा प्रतिबंध, जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक थी, हटा लिया गया है। यह फैसला 58 साल पहले इंदिरा गांधी सरकार ने लिया था, जिसे केंद्र की मोदी सरकार ने पलट दिया है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा लिया है। यह जानकारी भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर जारी एक बयान में दी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस आदेश का स्वागत किया है। केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकारों द्वारा जारी आदेशों में संशोधन किया है, जिसके तहत सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं और इसकी अन्य गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाई गई थी। आरोप है कि पिछली कांग्रेस सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन लाभ आदि को ध्यान में रखते हुए सरकारी कर्मचारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने से बचते थे।

आरएसएस पर 58 साल पहले प्रतिबंध क्यों लगाया गया था और क्या तर्क दिया गया था?

सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में जाने पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को सही ठहराते हुए सरकार ने तब तर्क दिया था कि आरएसएस के कारण कर्मचारियों की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा यह भी बताया गया था कि धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए यह उचित नहीं माना जाएगा। यानी अगर सरकारी कर्मचारी आरएसएस की शाखा में जाते हैं तो यह धर्मनिरपेक्षता के लिए ठीक नहीं होगा। और इसीलिए सिविल सेवा (आचरण) नियम 1964 का हवाला देते हुए सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस के कार्यक्रमों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

जिस सिविल सेवा (आचरण) नियम 1964 का हवाला देते हुए 58 साल पहले आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया गया था, वह क्या कहता है:

केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 का नियम 5 कहता है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी राजनीतिक दल का सदस्य नहीं होगा।

1. राजनीति में भाग लेने वाले किसी संगठन का सदस्य नहीं होगा, 2. सरकारी कर्मचारी राजनीतिक आंदोलन में भाग नहीं लेंगे। 3. सरकारी कर्मचारी राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि आरएसएस की पहचान एक सांस्कृतिक और सामाजिक सेवा संगठन के रूप में रही है। इसके बावजूद राजनीति के नियम का हवाला देते हुए आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि इस बीच मध्य प्रदेश समेत कई राज्य सरकारों ने इस आदेश को निरस्त कर दिया था, लेकिन इसके बाद भी केंद्र सरकार के स्तर पर यह वैध रहा। इस मामले में इंदौर कोर्ट में केस चल रहा था, जिस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था। इस पर कार्रवाई करते हुए केंद्र सरकार ने आदेश जारी कर उक्त प्रतिबंध खत्म करने की घोषणा की।

केंद्र ने अपने आदेश में क्या कहा?

कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय की ओर से 9 जुलाई को जारी एक ऑफिस मेमोरेंडम शेयर किया, जो आरएसएस की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी से संबंधित है। उक्त आदेश में कहा गया है, “उपर्युक्त निर्देशों की समीक्षा की गई है और 30 नवंबर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के संबंधित कार्यालय ज्ञापनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख हटाने का निर्णय लिया गया है।” आदेश की तस्वीर के साथ एक पोस्ट में रमेश ने कहा, “सरदार पटेल ने फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध हटा लिया गया था। इसके बाद भी आरएसएस ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया।” उन्होंने पोस्ट में कहा, “1966 में सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था और यह सही निर्णय भी था। यह प्रतिबंध लगाने के लिए 1966 में जारी किया गया आधिकारिक आदेश है।”

आरएसएस के बारे में सरदार पटेल ने क्या कहा था?
सरदार पटेल ने एक भाषण में कहा था, “हम सरकार में आरएसएस आंदोलन से निपट रहे हैं। वे चाहते हैं कि हिंदू राज्य या हिंदू संस्कृति को बलपूर्वक थोपा जाए। कोई भी सरकार इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। इस देश में लगभग उतने ही मुसलमान हैं जितने विभाजित हिस्से में हैं। हम उन्हें भगाने नहीं जा रहे हैं। विभाजन और उसके बाद जो कुछ भी हुआ, उसके बावजूद अगर हम वह खेल शुरू करते हैं तो यह एक बुरा दिन होगा। हमें समझना चाहिए कि वे यहीं रहेंगे और उन्हें यह महसूस कराना हमारा कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि यह उनका देश है। बेशक, दूसरी ओर, इस देश के नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना उनकी जिम्मेदारी है।” पटेल ने अंत में कहा, “हम दोनों को यह समझना चाहिए कि विभाजन अतीत की बात है।” कांग्रेस नेता ने इस फैसले को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला। केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए रमेश ने कहा, “4 जून 2024 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस के बीच रिश्तों में कड़वाहट आ गई है। 9 जुलाई 2024 को 58 साल का प्रतिबंध हटा लिया जाएगा, जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए भी लागू था।” रमेश ने कहा, “मेरा मानना ​​है कि नौकरशाही व्यवस्था में सुधार की जरूरत है।”

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