मोदी सरकार ने देश में बड़ी संख्या में वंदे भारत ट्रेनें चलाने की योजना में बड़ा बदलाव किया है। नई योजना के तहत अब देश में 120 की जगह 80 वंदे भारत ट्रेनें ही चलाई जाएंगी, जबकि हर ट्रेन में 16 की जगह 24 कोच होंगे। इसका मतलब यह है कि ट्रेनों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन हर ट्रेन में कोच की संख्या 50 फीसदी बढ़ा दी गई है। सरकार ने यह बदलाव क्यों किया है और इसका मकसद क्या है, इस खबर के जरिए हम इसकी विस्तार से पड़ताल करते हैं।
दरअसल, आपको पता ही होगा कि हाल ही में वंदे भारत ट्रेनों के कोच बनाने के लिए जारी किए गए 35 हजार करोड़ रुपये के टेंडर को रद्द कर दिया गया था। इसके लिए टेंडर लेने वाली कंपनी ने और पैसे मांगे, जबकि रेलवे अपनी बात पर अड़ा रहा और आखिरकार टेंडर को खारिज करना पड़ा। अब रेलवे ने अपने टेंडर की रूपरेखा फिर से तैयार की है। इसमें व्यापक बदलाव किए गए हैं, ताकि इस बार इसे रद्द करने की जरूरत न पड़े।
क्या है नया टेंडर
नए टेंडर में प्रत्येक ट्रेन सेट की अनुमानित लागत 120 करोड़ रुपये है। नए ऑर्डर में सिर्फ 80 ट्रेनें चलाई जानी हैं और हर ट्रेन में 24 कोच लगाए जाएंगे। यह टेंडर इसी साल नवंबर तक महाराष्ट्र के लातूर में बनी फैक्ट्री को सौंप दिया जाएगा। इस टेंडर को रेल विकास निगम लिमिटेड और रूस के कंसोर्टियम द्वारा पूरा किया जाएगा। इस ऑर्डर का पहला प्रोटोटाइप सितंबर 2025 तक पेश किया जाएगा।
क्या था पुराना कॉन्ट्रैक्ट
रेलवे के कॉन्ट्रैक्ट में 200 स्लीपर वर्जन वंदे भारत ट्रेनें बनाने का ऑर्डर था, जिसमें हर ट्रेन में 16 कोच लगाए जाने थे। इसके साथ ही इन ट्रेनों का अगले 35 सालों तक रखरखाव भी देखना था। नीलामी में एल1 को लातूर जिले में मराठवाड़ा रेल कोच फैक्ट्री में 120 ट्रेनें बनानी थीं, जबकि एल2 को आईसीएफ चेन्नई में 80 ट्रेनें बनानी थीं। हालांकि, रेल मंत्रालय ने अब सिर्फ 80 ट्रेनें बनाने को कहा है और हर ट्रेन में 24 कोच होने हैं।
पहली ट्रेन कब आएगी
अनुबंध के तहत प्रोटोटाइप के एक साल के भीतर 12 वंदे भारत ट्रेनों का पहला बैच आना है। अगर प्रोटोटाइप सितंबर 2025 में आता है तो पहला बैच सितंबर 2026 तक आ जाना चाहिए। इसके बाद दूसरे साल 18 ट्रेनों का बैच बनाया जाएगा और फिर हर साल 25 ट्रेनें लॉन्च की जाएंगी। इन ट्रेनों के रखरखाव की सुविधा जोधपुर, दिल्ली और बेंगलुरु में विकसित की जाएगी।
कौन बनाएगा कितनी ट्रेनें
नए टेंडर में साफ लिखा है कि इस प्रोजेक्ट को 4 कंपनियां काइनेट रेलवे सॉल्यूशंस, जेवी-इंडिया रेल विकास निगम लिमिटेड, रूसी इंजीनियरिंग कंपनी मेट्रोवैगनमेश और लोकोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम मिलकर पूरा करेंगी। पहली दो कंपनियां 25 फीसदी ट्रेनों, दूसरी 70 फीसदी और तीसरी 5 फीसदी ट्रेनों का निर्माण पूरा करेंगी।