कारगिल युद्ध के दौरान सेना प्रमुख रहे जनरल वेद प्रकाश मलिक ने कहा कि तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ भले ही अच्छे कमांडो रहे हों, लेकिन वे अच्छे रणनीतिकार नहीं थे। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध का खामियाजा पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भुगतना पड़ा। युद्ध हारने के बाद जब पाकिस्तान ने एलओसी पार से अपने सैनिकों को वापस बुलाने की बात की, तो यह स्पष्ट हो गया कि असली सीमा रेखा यही है।
जनरल मलिक ने कहा कि 80 के दशक में जब वे ब्रिगेडियर थे, तब भी परवेज मुशर्रफ की नजर भारतीय चौकियों पर थी। उन्होंने सियाचिन सेक्टर में कुछ चौकियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रहे। इस कोशिश में कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। इसके बाद परवेज मुशर्रफ को बहुत दुख हुआ। उन्हें लगा कि मिशन विफल हो गया और कई सैनिक भी मारे गए। इसके बाद जब परवेज मुशर्रफ मेजर जनरल बने, तो उन्होंने फिर से पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से भारतीय इलाके पर हमला करने की इजाजत मांगी। हालांकि, भुट्टो ने इसे मूर्खतापूर्ण हरकत बताते हुए मना कर दिया।
जनरल मलिक ने कहा कि 1998 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उन्हें सेना प्रमुख बनाया था। सेना प्रमुख बनने के बाद परवेज मुशर्रफ ने सोचा कि यही वह समय है जब सियाचिन पोस्ट को वापस लिया जा सकता है। फरवरी 1999 में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय क्षेत्र में गश्त शुरू की। हालांकि, हिमस्खलन और तूफान के कारण उसके कई सैनिक मारे गए। बाद में मुशर्रफ ने कहा कि वह भारत के साथ बातचीत में शरीफ की मदद करेंगे।
परवेज मुशर्रफ क्या योजना बना रहे थे, इसकी जानकारी पाकिस्तानी सरकार को भी नहीं थी। जनरल मलिक ने कहा कि ठंडे इलाकों में सेना को पर्याप्त उपकरण और अन्य सामग्री नहीं मिल पा रही थी। सरकार ने कहा था कि हम दो-तीन साल तक शांत रहें और उसके बाद सभी जरूरतें पूरी की जाएंगी। 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने कई प्रतिबंध भी लगाए थे। जब युद्ध शुरू हुआ तो बाहर से मदद की कोई उम्मीद नहीं थी। जब हमसे पूछा गया कि हथियार और उपकरण न होने पर क्या होगा तो हमारा जवाब था, हमारे पास जो है, उसी से युद्ध लड़ेंगे।
जनरल मलिक ने कहा कि पहले पाकिस्तान ने टोलोलिंग के रास्ते सैनिक भेजे। इसके बाद कश्मीर घाटी के इस इलाके की कमान 8वीं माउंटेन डिवीजन को सौंप दी गई। उन्होंने कहा कि जून के मध्य तक हमारे सैनिक शहीद होते रहे लेकिन जब हमने टोलोलिंग और तीन पिंपल रिज लाइन पर नियंत्रण पा लिया तो साफ हो गया कि अब पाकिस्तान कुछ नहीं कर सकता। कारगिल युद्ध ने दिखा दिया कि दो देश परमाणु क्षमता संपन्न होने के बाद भी सामान्य युद्ध लड़ सकते हैं।
जनरल मलिक ने कहा कि वे युद्ध विराम के लिए राजी नहीं थे, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इसके लिए दबाव बना रहे थे। 11 और 12 जुलाई को हुई बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे कई सैनिक शहीद हुए हैं। हमारे अपने लोग हमसे सवाल पूछेंगे। अगर युद्ध जारी रहा तो और भी सैनिक शहीद होंगे। उन्होंने कहा कि यह अंतरिम सरकार है और चुनाव होने हैं। इसके बाद हम इस बात पर भी सहमत हुए कि पाकिस्तान शर्त के मुताबिक पीछे हटेगा। उस समय तक हमने 90 फीसदी इलाकों पर फिर से कब्जा कर लिया था।
मुशर्रफ अच्छे रणनीतिकार नहीं थे
जनरल मलिक ने कहा कि परवेज मुशर्रफ भले ही अच्छे कमांडो रहे हों, लेकिन वे बुरे रणनीतिकार थे। परवेज मुशर्रफ कश्मीर में युद्ध लड़कर दुनिया का ध्यान इस ओर खींचना चाहते थे। लेकिन उस समय अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत का समर्थन कर रहा था। चीन खुलकर भारत का समर्थन नहीं कर रहा था, लेकिन उसका भी मौन समर्थन था। इसके बाद शरीफ ने अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ समझौता किया और कहा कि वे एलओसी पार से अपने सैनिकों को वापस बुला लेंगे। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह सोचने लगा कि नियंत्रण रेखा ही वास्तविक सीमा है और पाकिस्तान को वहां जाने का कोई अधिकार नहीं है।