धूम्रपान को फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ लोगों को धूम्रपान से बचने की सलाह देते हैं ताकि उनके फेफड़े लंबे समय तक बीमारियों से सुरक्षित रह सकें। हालांकि, हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में फेफड़ों के कैंसर के ज्यादातर मरीज धूम्रपान न करने वाले हैं और उन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है। भारत में धूम्रपान न करने वाले लोग तेजी से फेफड़ों के कैंसर का शिकार हो रहे हैं। अब सवाल यह है कि इसकी वजह क्या है? किन कारणों से धूम्रपान न करने वालों को फेफड़ों का कैंसर हो सकता है और इससे कैसे बचा जा सकता है।
धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा कारक है, लेकिन आजकल हवा जहरीली हो गई है और सांस के जरिए जहरीले तत्व लोगों के शरीर में पहुंच रहे हैं। लोग भले ही धूम्रपान न करते हों, लेकिन धुआं हवा के जरिए हर किसी के शरीर में प्रवेश कर रहा है। दिल्ली-एनसीआर समेत ज्यादातर मेट्रो शहरों में वायु प्रदूषण के कारण बुरा हाल है, जिसकी वजह से लोग धूम्रपान न करने के बावजूद फेफड़ों के कैंसर का शिकार हो रहे हैं। हालांकि, धूम्रपान न करने वालों में पारिवारिक इतिहास, सांस की बीमारी और उम्र समेत कई कारक फेफड़ों के कैंसर की वजह बन सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुषों को फेफड़ों के कैंसर का खतरा ज्यादा होता है।
पल्मोनोलॉजिस्ट ने बताया कि फेफड़ों का कैंसर 3 प्रकार का होता है। पहला स्क्वैमस सेल लंग कार्सिनोमा, दूसरा स्मॉल सेल लंग कैंसर और तीसरा कैंसर एडेनोकार्सिनोमा है। एडेनोकार्सिनोमा एक प्रकार का फेफड़ों का कैंसर है, जो धूम्रपान न करने वालों में सबसे अधिक होता है। राहत की बात यह है कि इस कैंसर का अच्छा इलाज उपलब्ध है और अगर सही समय पर इलाज शुरू कर दिया जाए, तो मौत का खतरा काफी कम हो सकता है। एडेनोकार्सिनोमा का इलाज टारगेटेड थेरेपी से किया जा सकता है। फेफड़ों के कैंसर के अन्य दो प्रकार तेजी से फैलते हैं और इनमें मौत का खतरा अधिक होता है। हालांकि, इनका भी इलाज उपलब्ध है।
डॉ. भगवान मंत्री ने बताया कि धूम्रपान के अलावा वायु प्रदूषण, फेफड़ों के कैंसर का पारिवारिक इतिहास, सांस की बीमारी और बढ़ती उम्र फेफड़ों के कैंसर के 5 बड़े जोखिम कारक हैं। फेफड़ों के कैंसर से बचने के लिए लोगों को समय-समय पर इसकी जांच करानी चाहिए। डॉक्टर अधिक जोखिम वाले लोगों को लो डोज सीटी स्कैन (एलडीटीसी) करवाने की सलाह देते हैं, क्योंकि इस जांच के जरिए फेफड़ों के कैंसर की शुरुआती अवस्था में ही पहचान की जा सकती है। जो लोग स्वस्थ हैं उन्हें यह स्कैन 3-5 साल में एक बार करवाना चाहिए, लेकिन धूम्रपान करने वाले लोग डॉक्टर की सलाह पर हर साल यह टेस्ट करवा सकते हैं।