Saturday, February 8, 2025
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वो शख्स जिसने भारत को दिया पहला शिपयार्ड, विमान और कार कारखाना, कहा जाता है ट्रांसपोर्ट का जनक

Walchand Hirachand Doshi: अमूमन देखा जाता है कि संपन्न व्यवसायिक परिवार में जन्म लेने वाले नई चुनौतियां लेने से डरते हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने खानदानी व्यवसाय छोड़कर अपना अलग रास्ता चुना. ऐसे ही एक शख्स थे वालचंद हीराचंद दोशी. उन्होंने भारत की पहली कार फैक्ट्री की स्थापना की. उन्हें भारत में ट्रांसपोर्ट का जनक कहा जाता है. इतना ही नहीं वालचंद ने भारत में पहला मॉडर्न शिपयार्ड और पहला विमान कारखाना भी स्थापित किया था. वालचंद दोशी ने वालचंद ग्रुप की स्थापना की. उन्होंने अपने ग्रुप के माध्यम से देश को कई निर्माण कंपनियां, इंजीनियरिंग कंपनियां और कई अन्य व्यवसाय भी दिए.

15 दिन के थे हो गई मां की मौत
वालचंद दोशी का जन्म 23 नवंबर, 1882 को शोलापुर (महाराष्ट्र) में बिजनेस, राजनीति और धर्म के क्षेत्र में सक्रिय एक प्रसिद्ध परिवार में हुआ था. हालांकि, वालचंद ने अपने जन्म के पंद्रह दिनों के भीतर ही अपनी मां को खो दिया. उनके पिता सेठ हीराचंद ने अपने बच्चों के पालन-पोषण में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने 1899 में सोलापुर गवर्नमेंट हाई स्कूल से मैट्रिक पास किया. बाद में उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की. स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, वह अपने पारिवारिक व्यवसाय में शामिल हो गए. वालचंद शुरू में कपास का बिजनेस और साहूकारी का काम करते थे.

एक क्लर्क के साथ साझेदारी में बनाई कंपनी
कुछ वर्षों तक पारिवारिक व्यवसाय में काम करने के बाद, उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. इसलिए, वालचंद ने नौकरी छोड़ने का फैसला किया और एक पूर्व रेलवे क्लर्क के साथ साझेदारी में निर्माण-संबंधी काम के लिए रेलवे ठेकेदार बन गए. कुछ परियोजनाओं में सरकार के नियंत्रण का विरोध करते हुए, वालचंद दोशी ने अपना शिपयार्ड शुरू किया.
देश को दिया पहला विमान कारखाना
बाद में, उन्होंने भारत को पहला विमान कारखाना दिया. उन्होंने देश की पहली विमान निर्माण कंपनी हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड (एचएएल) की स्थापना की. वह जनसंचार माध्यमों की क्षमता को जानते थे, इसलिए उन्होंने जनसंचार माध्यमों के विकास में अहम भूमिका निभाई. एनी बेसेंट और एम. आर. जयकर के साथ वालचंद 1927 में स्थापित राष्ट्रीय समाचार एजेंसी, फ्री प्रेस ऑफ इंडिया के पहले प्रायोजक थे.

उनकी कंपनी से निकली पहली कार
वालचंद ने 1945 में मुंबई के पास प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स की स्थापना की. भारत में बनी पहली कार उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी बिड़ला और हिंदुस्तान मोटर्स के उद्यम से पहले, 1949 में उनके कारखाने से निकली थी. वालचंद हीराचंद की महत्वाकांक्षा वास्तव में भारतीय ऑटोमोटिव उद्योग के लिए मील का पत्थर थी.

देश की टॉप टेन कंपनियों में था वालचंद ग्रुप
अपनी महत्वाकांक्षा और दूरदर्शिता के चलते वह अपने समय के सबसे सफल उद्योगपतियों में से एक बन गए. उन्होंने कई अन्य औद्योगिक परियोजनाओं, जैसे चीनी और कपड़ा कारखाने, बिजली संयंत्र और रासायनिक संयंत्रों की स्थापना में भी प्रमुख भूमिका निभाई. वह दादाभाई नैरौजी, न्यायमूर्ति एम. जी. रानाडे जैसे महान राष्ट्रीय नेताओं के कामों से प्रभावित थे. वालचंद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शुरुआती और सक्रिय समर्थकों में से थे. 1947 तक, जब भारत आजाद हुआ वालचंद समूह की कंपनियां देश के दस सबसे बड़े व्यापारिक घरानों में से एक थीं.

हालीवुड से प्रेरणा लेकर बनाया स्टूडियो
वालचंद के लिए, बिजनेस शायद सिर्फ पैसा कमाने की जगह नहीं थी, बल्कि रोमांच का भी स्थान था. उदाहरण के लिए, हॉलीवुड की यात्रा ने उन्हें एक विशाल स्टूडियो बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसे अब भारत में वालचंद स्टूडियो के नाम से जाना जाता है. जिसके लिए वह पहले प्रसिद्ध बॉलीवुड निर्माता-निर्देशक वी. शांताराम के साथ बातचीत कर रहे थे, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला. अपने जीवनकाल के दौरान, उन्होंने कई धर्मार्थ ट्रस्ट शुरू किए. नए शैक्षणिक संस्थान, बोर्डिंग हाउस भी स्थापित किए और अन्य परोपकारी कार्यों को आगे बढ़ाया.

भाईयों के बच्चे चलाते हैं उनका बिजनेस
1949 में उन्हें स्ट्रोक का सामना करना पड़ा. उन्होंने 1950 में बिजनेस से संन्यास ले लिया. अंतिम वर्षों में उनकी पत्नी कस्तूरबाई ने उनकी देखभाल की. 8 अप्रैल 1953 को सिद्धपुर, गुजरात में उनका निधन हो गया. वालचंद का कोई वारिस नहीं था. उनका बिजनेस अब गुलाबचंद हीराचंद, लालचंद हीराचंद और रतनचंद हीराचंद नाम से उनके भाइयों के वंशजों द्वारा चलाया जाता है, जिन्होंने जीवित रहने तक एक साथ काम किया था.

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