प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूक्रेन दौरे पर पूरी दुनिया की नज़र है। वे इस समय कीव में हैं और राष्ट्रपति जेलेंस्की से बातचीत कर रहे हैं। इस कूटनीतिक दुनिया के अलावा यूक्रेन के साथ भारत के रिश्तों पर भी चर्चा हो रही है। आज की कहानी की शुरुआत 1971 के युद्ध से करते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के कारण बांग्लादेश का जन्म हुआ था। उस समय पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के हालात बहुत खराब थे। वहां से लाखों शरणार्थी भारत में घुस आए थे। पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान में लोगों को मार रही थी।
इतने खराब हालात के बावजूद अमेरिका, ब्रिटेन, चीन जैसी वैश्विक शक्तियों ने इस समस्या से मुंह मोड़ लिया था। इस बीच भारत चक्रव्यूह में बुरी तरह फंसता जा रहा था। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने भारत की जबरदस्त कूटनीतिक क्षमता का परिचय दिया और सोवियत संघ के साथ सैन्य समझौता किया गया। इस समझौते के तहत दूसरे पर किसी बाहरी हमले की स्थिति में साथी देश के साथ खड़े रहने की बात कही गई थी।
इस समझौते के कुछ ही दिनों बाद पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। दोनों देशों के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया। इस दौरान पाकिस्तान के सबसे करीबी दोस्त अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत के खिलाफ युद्ध की तैयारी कर ली थी। अमेरिका ने वियतनाम से अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर मोड़ दिया। उसका सातवां बेड़ा एक द्वीप की तरह था। इसमें 70 से ज्यादा लड़ाकू विमान तैनात थे। इसी तरह ब्रिटेन ने भी अपना बेड़ा अरब सागर में भेज दिया। तब चीन की तरफ से भी हमले की आशंका थी। एक तरह से इस युद्ध में भारत को चारों तरफ से घेरने की तैयारी थी।
लियोनिद ब्रेझनेव उठ खड़े हुए
इस स्थिति में भारतीय नेतृत्व ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति लियोनिद ब्रेझनेव को एक आपातकालीन संदेश भेजा। भारत के साथ हुए सैन्य समझौते का पूरी तरह से पालन करते हुए उन्होंने तुरंत मिसाइलों से लैस एक पनडुब्बी बेड़ा बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में भेज दिया। ये पनडुब्बियां अमेरिकी बेड़े के आने से पहले सीना तानकर समुद्र में खड़ी हो गईं। तब अमेरिकी बेड़े के कप्तान ने समुद्र की इस चुनौती को देखा और उन्होंने वाशिंगटन को संदेश भेजा और फिर अमेरिकी बेड़े को वापस लौटना पड़ा। अब आप सोच रहे होंगे कि इस पूरी कहानी में यूक्रेन कहां है। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। उस समय यूक्रेन नाम के किसी देश का अस्तित्व नहीं था। यह सोवियत रूस का ही हिस्सा था। लेकिन, इस पूरी कहानी का सबसे बड़ा किरदार सोवियत संघ के राष्ट्रपति लियोनिद ब्रेझनेव थे। ये वही यूक्रेनी शख्स हैं जिनकी वजह से भारत वैश्विक चक्रव्यूह को तोड़ पाया। लियोनिद ब्रेझनेव का जन्म आज के यूक्रेन के कामिंस्की में हुआ था। वे रूस की अक्टूबर क्रांति से बहुत प्रभावित हुए और 1923 में ही कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। वे 1964 से 1982 तक करीब 18 साल तक सोवियत संघ के राष्ट्रपति रहे।