Friday, November 22, 2024
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यदि इंदिरा गांधी थोड़ी भी होशियार होतीं तो बांग्लादेश भारत के लिए सिरदर्द नहीं बनता और पाकिस्तान अपनी हद में रहता!

भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल बदलने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जाता है। 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के साथ लंबी लड़ाई लड़ी और बांग्लादेश के रूप में इस भूमि पर एक स्वतंत्र देश की स्थापना की। इस युद्ध में दिवंगत पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के नेतृत्व कौशल की हर कोई प्रशंसा करता है। इसके बाद इंदिरा गांधी को आयरन लेडी कहा जाने लगा। उस समय के सभी राजनेताओं ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इंदिरा गांधी की प्रशंसा की। 1947 में आजादी और देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के साथ यह तीसरा युद्ध था। सबसे पहले 1948 में पाकिस्तानी सेना ने कबायलियों के साथ कश्मीर में घुसपैठ की। इस पहले युद्ध में ही पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा। फिर 1965 में दोनों देशों के बीच युद्ध लड़ा गया। उस समय देश का नेतृत्व लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में था। भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई थी। इस युद्ध में दोनों पक्षों को जान-माल का भारी नुकसान हुआ। लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री शास्त्री ने सोवियत संघ (वर्तमान रूस) के हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तान के साथ समझौता कर लिया। यह समझौता ताशकंद समझौते के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस समझौते में पीएम शास्त्री ने एक झटके में भारतीय सेना द्वारा कब्जाई गई जमीन को वापस करने की बात कही। दोनों देश युद्ध-पूर्व स्थिति पर लौटने के लिए सहमत हुए। उनके इस फैसले की देश के एक वर्ग ने आलोचना की।

1971 का युद्ध

पाकिस्तान के साथ युद्ध के ठीक छह साल बाद भारत को एक बार फिर भारी संकट का सामना करना पड़ा। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना के अपराध चरम पर पहुंच गए। पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषी लोगों के खिलाफ उनके अपराधों, नरसंहारों और बलात्कारों से तंग आकर करोड़ों लोग भारतीय सीमा में घुस आए। भारत के सामने शरणार्थियों का बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया। इसके लिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से काफी अपील की, लेकिन अमेरिका समेत सभी पश्चिमी शक्तियों ने इस संकट से मुंह मोड़ लिया।

तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जबरदस्त नेतृत्व कौशल दिखाया। भारत ने बांग्लादेश के मुक्ति वाहिनी संगठन को समर्थन देने का फैसला किया। फिर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। भारतीय सेना ने ढाका शहर पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान की पूरी सप्लाई लाइन काट दी गई। फिर 16 दिसंबर 1971 को 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यह विश्व के युद्ध इतिहास में आत्मसमर्पण की सबसे बड़ी घटना थी। पाकिस्तान के आत्मसमर्पण के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश नाम से एक स्वतंत्र देश का गठन हुआ।

फिर सौदे का मौका

बांग्लादेश की स्थापना में भारत के सहयोग के बाद वहां के लोग और सरकार सभी भारत के आभारी थे। लेकिन, यहां भी यही सवाल उठा कि इतनी बड़ी जीत हासिल करने के बाद भारत को इस युद्ध से क्या मिला? अगर भारत के कूटनीतिज्ञों ने 1948 और 1965 के युद्धों से सीख ली होती तो वे निश्चित रूप से लंबे समय में भारत के हितों के बारे में सोचते। ऐसी स्थिति में वे बांग्लादेश के भीतर भारत के लिए एक कॉरिडोर की मांग कर सकते थे। उस स्थिति में भारत के दृष्टिकोण से यह मांग अनुचित नहीं थी।

कोलकाता से अगरतला

अब एक बार फिर बांग्लादेश के नक्शे पर नजर डालते हैं। अगर भारत ने बांग्लादेश से होकर कॉरिडोर बनाया होता तो कोलकाता से अगरतला की मौजूदा 1600 किलोमीटर की दूरी घटकर सिर्फ 500 किलोमीटर रह जाती। इसके साथ ही भारत को कोलकाता और अगरतला के बीच ‘चिकन नेक’ के अलावा एक और रास्ता मिल जाता। कॉरिडोर के अलावा भारत के पास दूसरे विकल्प भी थे। वह अपने चिकन नेक इलाके को और चौड़ा कर सकता था। इससे पूर्वोत्तर भारत में परिवहन की सुविधाएं बेहतर होतीं। भारत उस समय ही बांग्लादेश के साथ दीर्घकालिक समझौता कर सकता था, जिससे भारत बंगाल की खाड़ी के रास्ते कोलकाता से पूर्वोत्तर भारत तक बिना किसी बाधा के पहुंच सकता था।

…तो यह सिरदर्द नहीं बनता

अगर ऐसा हुआ होता तो बांग्लादेश आज भारत के लिए सिरदर्द नहीं बनता। जिस तरह से यह देश चीन और पाकिस्तान के प्रभाव में आ रहा है, उससे लगता है कि 1971 में भारत को उदारता दिखाने की कोई जरूरत नहीं थी। वह बांग्लादेश को आजाद कराने के बदले में उससे कोई भी कीमत वसूल सकता था। लेकिन, पीएम इंदिरा गांधी ने शायद यह सोचकर ऐसा नहीं किया कि नैतिकता भी कोई चीज होती है। दुनिया को यह नहीं सोचना चाहिए कि भारत ने अपने फायदे के लिए बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग किया। लेकिन, बांग्लादेश की जनता के एक बड़े वर्ग और वहां की कट्टरपंथी ताकतों को देखकर स्वर्गीय इंदिरा गांधी की आत्मा भी यही कह रही होगी कि काश हम थोड़े समझदार होते…

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