महाराष्ट्र से गुजरात पहुंचा चांदीपुरा वायरस लगातार अपने पांव पसार रहा है। हर दिन यह किसी न किसी बच्चे को अपना शिकार बना रहा है। दावा है कि मंगलवार तक गुजरात और राजस्थान में इसके 12 मामले सामने आए हैं। इनमें से 6 की मौत हो चुकी है और 6 का इलाज चल रहा है। इस वायरस की चपेट में आने वाले बच्चों को शुरुआत में बुखार आता है, फिर दिमाग में सूजन आती है और जब मामला गंभीर हो जाता है तो उनकी मौत हो जाती है। नाम और जोखिम के लिहाज से यह वायरस बिल्कुल अलग है। ऐसे में सवाल यह है कि इस वायरस का नाम चांदीपुरा क्यों रखा गया? यह बीमारी कितनी पुरानी है? डॉ. अंबेडकर सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च नई दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर डॉ. सुनीत के सिंह इस बारे में बता रहे हैं-
…तो इसलिए रखा गया वायरस का नाम चांदीपुरा
डॉक्टर के मुताबिक, चांदीपुरा वायरस का नाम चांदीपुरा इसलिए रखा गया क्योंकि इसका पहला प्रकोप साल 1964-65 में महाराष्ट्र के नागपुर के चांदीपुरा गांव में हुआ था। यह उस एक जगह पर अलग-थलग पड़ा वायरस था। फ्लू और जापानी इंसेफेलाइटिस के मिले-जुले लक्षणों वाला यह वायरस बच्चों को संक्रमित करता है। खास बात यह है कि तब से अब तक दुनिया के किसी भी देश में इस वायरस का कोई मामला नहीं मिला है। लेकिन, महाराष्ट्र से यह आंध्र प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में भी फैल गया। फिलहाल, राजस्थान समेत दूसरे राज्यों में इसके मामले मिल रहे हैं।
बरसात में संक्रमण देखने को मिलता है
माना जाता है कि यह संक्रमण आमतौर पर बरसात के मौसम में ही देखने को मिलता है। यह संक्रमित रोग मक्खी, मच्छर के काटने से होता है। 9 महीने से 14 साल की उम्र के बच्चों में यह संक्रमण पाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस वायरस का संक्रमण सबसे ज्यादा देखने को मिलता है।
इन लक्षणों पर नज़र रखें
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि किसी बच्चे में तेज़ बुखार, उल्टी, दस्त, सिर दर्द और ऐंठन जैसे प्राथमिक लक्षण दिखाई देते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें। इस बीमारी के संक्रमित होने पर आने वाले बच्चे के मस्तिष्क में सूजन आ जाती है। इसके बाद बच्चे की हालत बिगड़ती है. माना जा रहा है कि इस स्थिति में ही बच्चों की जान जा रही है। हालाँकि, संक्रमण की वजह से इसका पता लगाया जा रहा है।