फ्रांस के संसदीय चुनाव में किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. यहां की स्थिति कुछ ऐसी है जैसी 1996 के लोकसभा चुनाव में अपने देश की थी. 1996 के संसदीय चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. इस नाते दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में उसने सरकार बनाई लेकिन बहुमत के अभाव में उनको केवल 13 दिनों के भीतर पद छोड़ना पड़ा. फिर देश में जनता दल के नेता एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी. उसे वामपंथी दलों और कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था. हालांकि वह एक साल से कम समय (1 जून 1996 से 27 अप्रैल 1997) तक पीएम रहे. इसके बाद इंद्रकुमार गुजराल को पीएम बनाया गया.
लेकिन, हम इनकी चर्चा नहीं कर रहे हैं. इन दोनों सरकारों को पीछे से कंट्रोल करने का काम एक दिग्गज वामपंथी नेता कर रहे थे. उसका नाम था हरकिशन सिंह सुरजीत. आज फ्रांस की हालत करीब-करीब उस वक्त के भारत जैसी है. फ्रांस में इस बार एक वामपंथी गठबंधन को सबसे अधिक सीटें मिली हैं. लेकिन वह अपने दम पर सरकार नहीं बना सकता. उसे सहयोगियों की जरूरत है और ऐसे में उसके नेता जीन-लुक मेलेंचोन (Jean-Luc Melenchon) की भूमिका काफी अहम हो गई है. माना जा रहा है कि जीन-लुक कॉमरेड सुरजीत की भूमिका में आ सकते हैं.
46 सांसदों के नेता पीएम बने
आप 1996 के भारतीय चुनाव को याद करेंगे तो पाएंगे कि मात्र 46 लोकसभा सीटें हासिल करने वाली पार्टी के नेता पीएम बने थे. यह पार्टी थी जनता दल. वह संयुक्त मोर्चा गठबंधन का नेतृत्व कर रही थी. उसमें माकपा और भाकपा के साथ कई अन्य क्षेत्रीय दल शामिल थे. उस चुनाव में माकपा को 32 और भाकपा को 12 सीटें मिली थीं. मजेदार बात यह है कि उस चुनाव की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा थी. उसे 161 सीटें मिली थीं. दूसरे नंबर कांग्रेस थी जिसके पास 140 सीटें थीं लेकिन ये दोनों दल सरकार से बाहर थे.
कांग्रेस की भूमिका होंगे मैक्रों!
देवेगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल की संयुक्त मोर्चा सरकार को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया था. लेकिन, इस गठबंधन को चलाने में सबसे बड़ी भूमिका वाम नेता हरकिशन सिंह सुरजीत की थी. सुरजीत उस वक्त माकपा के महासचिव हुआ करते थे. कई मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसे दावे किए गए कि उस माकपा के सबसे लोकप्रिय नेता और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु को पीएम बनाए जाने का प्रस्ताव था लेकिन सुरजीत ने सत्ता में भागीदारी से इनकार कर दिया था. इस कारण ज्योति बसु पीएम नहीं बन सके. हालांकि माकपा की सहयोगी भाकपा सरकार में शामिल हुई और उसके दिग्गज वामपंथी नेता इंद्रजीत राव देश के गृहमंत्री बने.
कॉमरेड जीन-लुक मेलेंचोन
खैर, हम आते हैं फ्रांस चुनाव पर. फ्रांस की स्थिति काफी हद तक ऐसी ही है. जीन-लुक मेलेंचोन वाम गठबंधन के सबसे बड़े नेता हैं. वह अलगे पीएम की रेस में बताए जाते हैं. फ्रांस की राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूम रही है. इन्होंने दूसरे राउंड के चुनाव से ठीक पहले लेफ्ट पार्टियों को एक गठबंधन के नीचे लाने में सफलता हासिल की. वह दशकों से फ्रांस में लेफ्ट की राजनीति करते हैं. वह 30 सालों तक सोशलिस्ट पार्टी में रहे. वह कई मंत्रालय संभाल चुके हैं. 2016 में उन्होंने अपनी पार्टी फ्रांस अनबोव्ड बना ली. वह 2012, 2017 और 2022 में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ चुके हैं. 2022 में वह मैक्रों, ली पेन के बाद तीसरे नंबर पर थे. ऐसी संभावना जताई जा रही है कि अगर राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों सबसे बड़े गठबंधन के नेता को पीएम नियुक्त करते हैं तो जीन लुक पीएम बन सकते हैं. अगर कोई अन्य नेता पीएम बनते हैं तो भी जीन लुक की भूमिका बहुत बड़ी होगी.