Friday, November 22, 2024
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IVF के जरिए माता-पिता बनने वालों के लिए बड़ी खबर, ‘अंडा दान करने वाली महिला नहीं कर सकती जैविक मां होने का दावा’

पति ने तर्क दिया कि चूंकि उसकी पत्नी की बहन ने अंडा दान किया था, इसलिए जैविक माता-पिता के रूप में मान्यता पाने का उसका वैध दावा है तथा महिला का बच्चों पर कोई अधिकार नहीं है।

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि अंडा दान करने वाली महिला जेनेटिक मां के तौर पर योग्य हो सकती है, लेकिन उसे बच्चे की जैविक मां के तौर पर पहचाने जाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह टिप्पणी दो बहनों से जुड़े सरोगेसी मामले में की। जस्टिस मिलिंद जाधव की अध्यक्षता वाली बेंच ने नवी मुंबई की एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया, जिसका पति उसकी जानकारी के बिना अपनी जुड़वां बेटियों को झारखंड ले गया था।

आईवीएफ से हुआ जुड़वां बच्चों का जन्म

महिला की छोटी बहन की तरफ से डोनेट किए एग का उपयोग करके इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के माध्यम से जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ था। महिला अब उनकी जैविक मां होने का दावा करती है। विवाद इतना बढ़ गया कि मामला हाई कोर्ट पहुंच गया।

युवक की साली ने एग किया था डोनेट

जानकारी के अनुसार, झारखंड के रहने वाले एक शख्स ने 2012 में हिंदू रीति-रिवाजों से शादी की थी। शादी के कई साल बीत जाने के बाद कपल को बच्चा नहीं हुआ। डॉक्टर की सलाह पर दंपति ने आईवीएफ को अपनाया। युवक की पत्नी ने अपनी छोटी बहन से संपर्क किया जो जनवरी 2019 में अपने एग दान करने के लिए सहमत हो गई, जिससे आईवीएफ प्रक्रिया शुरू हुई।

एग डोनेट करने वाली महिला के पति और बेटी की हो गई मौत

इसके तीन महीने बाद, एग डोनेट करने वाली बहन और उसका परिवार का आगरा एक्सप्रेसवे पर एक्सीडेंट हो गया। हादसे में उसके पति और बेटी की मौत हो गई। घटना के लगभग चार महीने बाद उसकी बड़ी बहन ने जुड़वां बेटियों को जन्म दिया। 2019 से 2021 तक दंपति और उनके जुड़वां बच्चे नवी मुंबई में एक साथ रहे। हालांकि वैवाहिक कलह के बाद पति मार्च 2021 में अपनी पत्नी को बताए बिना बच्चों को झारखंड ले गया। इस दौरान वह घर पर मौजूद नहीं थी।

हाई कोर्ट पहुंचा मामला

पांच साल के जुड़वा बच्चों की कस्टडी और उनसे मिलने के अधिकार की मांग करते हुए महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। पति और बहन दोनों ने उसकी याचिका का विरोध किया। पिछले साल निचली अदालत ने महिला की याचिका खारिज कर दी थी। महिला का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता गणेश गोले ने तर्क दिया कि यह आदेश इस गलत धारणा पर आधारित था कि अंडा दाता, पत्नी की बहन, जुड़वा बच्चों की सरोगेट मां भी थी। पति ने तर्क दिया कि चूंकि उसकी पत्नी की बहन एग डोनर थी। इसलिए उसे जैविक माता-पिता के रूप में मान्यता प्राप्त करने का वैध दावा था और महिला का बच्चों पर कोई दावा नहीं बनता।

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