चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसे दुनिया की फैक्ट्री भी कहा जाता है। दुनिया भर के बड़े ब्रांड अपने उत्पाद यहीं बनवाते हैं। हालांकि, अब विदेशी निवेशक चीन से दूरी बनाते दिख रहे हैं। कोविड-19 के बाद दुनिया को एहसास हुआ कि उन्हें चीन के अलावा दूसरे देशों की ओर भी देखना होगा ताकि भविष्य में मांग और आपूर्ति के बीच इतना बड़ा अंतर फिर से पैदा न हो। इसके अलावा चीन की नीतियों और रवैये ने भी उसके खिलाफ माहौल बनाया है। इसका एक नमूना अप्रैल-जून तिमाही में जारी भुगतान संतुलन के आंकड़े हैं। इस तिमाही में चीन में प्रत्यक्ष निवेश में 15 अरब डॉलर की गिरावट आई है।
अगर यह गिरावट इस साल भी जारी रही तो 1990 के बाद पहली बार ऐसा होगा कि चीन का आयात उसके निर्यात से कम हो जाएगा और वह नेट आउटफ्लो वाला देश बन जाएगा। 2021 में चीन में रिकॉर्ड 344 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया। उसके बाद से वहां विदेशी निवेश में गिरावट आई है। चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी और भू-राजनीतिक तनाव ने कंपनियों को चीन पर अपनी निर्भरता कम करने पर मजबूर किया है। बाहर जा रहा पैसा
दूसरी तिमाही में चीन से 71 बिलियन डॉलर बाहर भेजे गए। यह सालाना आधार पर 80 प्रतिशत अधिक है। पिछले साल इस समय तक चीन से केवल 39 बिलियन डॉलर बाहर भेजे गए थे। चीन के व्यापार अधिशेष के आंकड़ों में भी विसंगतियां बढ़ रही हैं। पहले 6 महीनों में चीन का व्यापार अधिशेष बढ़कर 150 बिलियन डॉलर हो गया। जबकि उसके आंकड़ों में 87 बिलियन डॉलर की त्रुटि पाई गई।
अमेरिकी ट्रेजरी ने इस अंतर को उजागर किया और चीन से यह बताने का आग्रह किया कि ऐसा क्यों हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि निर्यात और आयात की गणना के लिए इस्तेमाल की जाने वाली गणनाओं के लिए अलग-अलग तरीकों के इस्तेमाल के कारण ऐसा हो रहा है।