Friday, November 22, 2024
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चंद्रशेखर आज़ाद जयंती: 15 कोड़े खाए लेकिन वंदे मातरम बोलना नहीं छोड़ा, 14 साल की उम्र में दिखाए थे बागी तेवर

चंद्रशेखर आज़ाद बचपन से ही विद्रोही स्वभाव के थे। वर्ष 1920-21 में वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। बाद में उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया और वे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए।

नई दिल्ली: अंग्रेजों से भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की आज जयंती है। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था। बचपन में उनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था लेकिन 14 साल की उम्र में उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद ‘आजाद’ उपनाम उनकी पहचान बन गया।

14 साल की उम्र में दिखाए तेवर

चंद्रशेखर आजाद 14 साल की उम्र में बनारस में पढ़ाई करने चले गए थे। वर्ष 1920-21 में वे गांधी जी से प्रभावित हुए और उनके असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। इस दौरान उन्हें गिरफ्तार कर जज के सामने पेश किया गया। जज ने उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम आजाद बताया। चंद्रशेखर ने अपने पिता का नाम स्वतंत्रता और निवास स्थान जेल बताया। इसके बाद जज ने उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई।

लेकिन चंद्रशेखर के तेवर कम नहीं हुए। वे हर कोड़े पर वंदे मातरम का नारा लगाते रहे। इसके बाद चंद्रशेखर सार्वजनिक जीवन में आजाद के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उनका जन्मस्थान भावरा अब आजादनगर कहलाता है।

कांग्रेस से मोहभंग

1922 में जब चौरी चौरा की घटना हुई तो गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया। इसके बाद आजाद का कांग्रेस से मोहभंग हो गया। इस दौरान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, सचिंद्रनाथ सान्याल, योगेशचंद्र चटर्जी ने उत्तर भारत के क्रांतिकारियों के साथ मिलकर 1924 में हिंदुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ का गठन किया। इसमें चंद्रशेखर आजाद भी शामिल हुए।

चंद्रशेखर आजाद तब काफी मशहूर हुए जब 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी एसपी सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई और लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया गया। इस दौरान आजाद ने भगत सिंह की काफी मदद की। चंद्रशेखर ने सॉन्डर्स के अंगरक्षक को गोली मार दी।

अल्फ्रेड पार्क में उनकी मृत्यु हो गई

चंद्रशेखर ने वर्ष 1931 में इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में समाजवादी क्रांति का आह्वान किया था। वे कहते थे कि अंग्रेज उन्हें कभी पकड़ नहीं पाएंगे और न ही ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी पर लटका पाएगी। इसीलिए अंग्रेजों की गोलियों का सामना करते हुए 27 फरवरी 1931 को इसी पार्क में उनकी मृत्यु हो गई।

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