समय की बचत और सुनवाई में होने वाली देरी को कम करने के लिए मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बनने जा रहा है। जो ऑनलाइन समन और वारंट तामील कराएगा। इस कदम से पुलिस और न्याय व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार आने की उम्मीद है।
मध्य प्रदेश सरकार ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत एक नए कानून को मंजूरी दी है, जिसके तहत अब अदालतें डिजिटल माध्यम से समन और वारंट जारी करेंगी। पुलिस इन्हें संबंधित आरोपी, शिकायतकर्ता या गवाह को व्हाट्सएप और ईमेल के जरिए तामील कराएगी।
परीक्षण और क्रियान्वयन प्रक्रिया
इस प्रक्रिया का परीक्षण करीब एक साल पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर खंडवा जिले में शुरू किया गया था। इसके सफल नतीजों के बाद इसे प्रदेश के 10 जिलों में लागू किया गया। अब पुलिस की सभी 63 इकाइयों में यह परीक्षण हो चुका है। संभवत: सोमवार को राज्य सरकार ने इस नियम को मंजूरी दे दी है और अधिसूचना जारी होते ही इसे पूरे प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा।
डिजिटल समन-वारंट के मुख्य लाभ
जनशक्ति की बचत: पुलिस को समन तामील कराने के लिए लोगों के घर नहीं जाना पड़ेगा, जिससे समय और जनशक्ति की बचत होगी और पुलिसिंग में सुधार होगा। सुनवाई में देरी नहीं होगी: समन-वारंट तामील में देरी नहीं होने से सुनवाई में देरी नहीं होगी, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी और फैसले जल्दी होंगे। डिजिटल माध्यमों का उपयोग: समन-वारंट एसएमएस, व्हाट्सएप या ईमेल के जरिए तामील होंगे, जिससे प्रक्रिया तेज और प्रभावी होगी।
जो लोग डिजिटल माध्यम नहीं अपनाते हैं
जिन लोगों के पास व्हाट्सएप या ईमेल नहीं है, उन्हें प्रिंटेड नोटिस दिए जाएंगे। अदालतें अब आरोपी, शिकायतकर्ता या गवाह का ईमेल पता और मोबाइल नंबर रिकॉर्ड कर रही हैं, ताकि इनके आधार पर पीडीएफ फॉर्म में समन/वारंट जारी किए जा सकें।
तेलंगाना, राजस्थान और कर्नाटक भी अपनाएंगे यह प्रक्रिया
मध्य प्रदेश की इस पहल की दूसरे राज्यों ने भी सराहना की है। तेलंगाना, राजस्थान और कर्नाटक ने इस प्रक्रिया को अपनाने की योजना बनाई है। एडीजी एससीआरबी चंचल शेखर ने बताया कि अब तक पुलिस को न्यायालयों के माध्यम से 1.29 लाख से अधिक समन-वारंट डिजिटल रूप में प्राप्त हो चुके हैं।
पुलिस और विधि विभाग के बीच समन्वय
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए मध्य प्रदेश पुलिस और विधि विभाग ने पुणे स्थित एनआईसी सीआईएस के मुख्यालय के साथ करीब 42 बैठकें की हैं। इस समन्वय के बाद ही यह डिजिटल व्यवस्था लागू की गई है। आपको बता दें कि मध्य प्रदेश की इस पहल को न्यायिक और पुलिस व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है, जो देश के अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बनेगा।