Friday, November 22, 2024
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समुद्र लगातार नीले से हरे रंग में बदल रहा है… जानिए कितना बदल गया और अब NASA की क्या योजना है?

ऐसा क्या हो रहा है कि नीला समन्दर का रंग लगातार हरा होता जा रहा है! नासा के एक्वा सैटेलाइट से पता चला है कि समुद्र के 56 प्रतिशत पानी का रंग नीला से हरा हो गया है। यह मुख्य रूप से पवित्र रेखा के समीप दक्षिणी हिन्द महासागर में स्थित है। एक्वा सैटेलाइट पर MODIS नाम के स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर से लेकर 2002 से 2022 तक 20 साल के डेटा के आधार पर यह बताया गया है।

हमारी पृथ्वी के 70% से अधिक हिस्सों को कवर करने वाले महासागर रहस्यमय तरीके से नीले से हरे रंग में बदल रहे हैं। यूके के नेशनल ओशनोग्राफी सेंटर के बी.बी. कैल के एक अध्ययन से यह बात सामने आई है। नासा एक्वा सैटेलाइट के लिए 20 साल का डेटा निकाला गया। इस अध्ययन में पता चला कि समुद्र के 56 फीसदी पानी का रंग नीला से हरे रंग में बदल दिया गया था।

आखिर बदल क्यों रहा है महासागर का रंग? जानें

समुन्द्र के रंगों में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार घटक महासागर में फाइटोप्लांकटन समुदाय (फाइटोप्लांकटन समुदाय) हैं। ये समुद्री जीव हरे रंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे कार्बन डाइऑक्साइड के टुकड़ों से बने होते हैं जिनके परिणाम के रूप में फाइटो ब्लूम बढ़ता है। इन फाइटोप्लांकटन में ग्रीन पिग्मेंट क्लोरोफिल (क्लोरोफिल) होता है जिससे समुद्र हरा दिखता है।
शब्दों में नहीं किया जा सकता वर्णन
बोलीं यूके के साउथम्पटन में नेशनल ओशनोग्राफी सेंटर के वैज्ञानिक बी. . हालाँकि ऐसा कुछ हो सकता है जिसे मंटिस झींगा या फाइओस देखा जा सकता है। बताएं कि कैल उस अध्ययन के प्रमुख लेखक हैं जिन्होंने महासागर के रंग से संबंधित बदलावों का डेटा दिया है।

उन्होंने इस पर भी बात की कि हिमालयन साहिल समुद्रों पर कैसे असर डालते हैं। उन्होंने कहा कि इस बात के साक्ष्य मिले हैं कि हिमालय पर खनिज पदार्थ किस तरह से जीवन को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। यह एक और तरीका है जिससे मनुष्य जीवमंडल प्रभावित हो सकता है।

नासा के आगे की योजना क्या है…

वैज्ञानिक फाइटोप्लांकटन में इजाफे और उनके कंम्युनिटीज का निरीक्षण कर रहे हैं क्योंकि वे जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। इसलिए वे ब्लू वायरस की सतह पर उनके क्लोरोफिल रेशियो पर नजर बनाए हुए हैं। नासा के आगामी मिशन 2024 में PACE सैटेलाइट मिशन लॉन्च किया गया, जो फाइटोप्लांकटन डायवर्सिटी का अगला अध्ययन करेगा। इजाफे की कोशिश है कि कैसे समुद्र में इन फैक्टर्स में इजाफे की गति धीमी हो जाए।

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