Thursday, November 21, 2024
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क्यों मनाया जाता है कजरी तीज व्रत? इसका है विशेष महत्व, उज्जैन के ज्योतिषाचार्य से जानें विधि

हिंदू धर्म में हर तिथि और हर व्रत का अपना महत्व होता है। इसी तरह तीज का भी विशेष महत्व है। तीज का व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। कजरी तीज हर साल भाद्रपद या भादो माह में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। कजरी तीज को बूढ़ी तीज, कजली तीज, सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि कजरी तीज के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पारिवारिक जीवन सुखमय बनता है। आइए जानते हैं उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज से तिथि और पूजा का महत्व।

जानिए कब है कजरी तीज

हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 21 अगस्त को शाम 5.15 बजे शुरू होगी और यह अगले दिन दोपहर 1:46 बजे तक रहेगी। इसलिए उदया तिथि के अनुसार यह व्रत 22 अगस्त को रखा जाएगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5:50 से 7:30 बजे के बीच रहेगा।

कजरी तीज पूजा सामग्री

कजरी तीज का व्रत रखने वालों को एक दिन पहले ही कुछ खास सामग्री का प्रबंध कर लेना चाहिए। इसकी पूजा में दीपक, घी, तेल, कपूर, धूपबत्ती, कच्चे सूत का धागा, नए कपड़े, केले के पत्ते, बेल के पत्ते, शमी के पत्ते, जनेऊ, जटा नारियल, सुपारी, कलश, भांग, धतूरा, दूर्वा घास, पीला कपड़ा, हल्दी, चंदन, नारियल, गाय का दूध, गंगाजल, दही, मिश्री, शहद और पंचामृत जैसी सामग्री की आवश्यकता होती है।

कजरी तीज व्रत का महत्व जानें

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, केजरी-तीज को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए मनाया था। तब से, सभी विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करने के लिए कजरी तीज का व्रत रखती हैं। कुंवारी लड़कियां भी मनचाहा वर पाने के लिए कजरी तीज का व्रत रखती हैं। मान्यता है कि यह व्रत वैवाहिक जीवन में सौभाग्य और समृद्धि लाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, शिव को पति के रूप में पाने के संकल्प के साथ मां पार्वती ने 108 वर्षों तक तपस्या कर भोलेनाथ को प्रसन्न किया था। तभी से इसे कजरी तीज या कजली तीज के रूप में मनाया जाता है।

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